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________________ 125 अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान 6) गुणस्थानातीत जीव द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म से रहित होने के कारण सिद्ध जीवों को 'देहमुक्त'/साक्षात् मुक्त कहते हैं। अब किसी से मुक्त होना उन्हें शेष नहीं रहा। मोक्षमार्ग अर्थात् मुक्त होने का प्रारंभ तो सम्यग्दर्शन होने पर चौथे गुणस्थान से होता है। 6. भव्यत्व शक्ति की अभिव्यक्ति का प्रारंभ चौथे अविरतसम्यक्त्व गुणस्थान से ही होता है। जो जीव मोक्षमार्ग (रत्नत्रय) प्रगट करने की शक्ति रखता है, उसे भव्यजीव कहते हैं। चौथे गुणस्थान में मोक्षमार्ग प्रारंभ होता है और सिद्ध अवस्था में भव्यत्व शक्ति का फल प्राप्त होता है। इस अपेक्षा से सिद्ध अवस्था में भव्यत्व शक्ति का अभाव बताया गया है। जैसे - सिद्ध अवस्था की प्राप्ति जीव को नियम से निज शुद्धात्मा के ध्यान से ही होती है, वैसे ही सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति भी नियम से शुद्धात्मा के ध्यान से ही होती है / इसी ध्यान को शुद्धोपयोग कहते हैं। इस विषयक जयसेनाचार्य का कथन अत्यंत स्पष्ट है। समयसार गाथा 320 की तात्पर्यवृत्ति टीका लिखने के बाद विशेष खुलासा करते हुये वे लिखते हैं - “उस ही परिणमन को आगमशाषा से औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षारिक सम्यक्त्वभावरूप कहा जाता है। और उस ही परिणमन को अध्यात्मभाषा से शुद्धात्माभिमुख परिणाम, शुद्धोपयोग आदि नामों से कहा जाता है।" इससे यह अर्थ सहज ही फलित हो जाता है कि प्रथमोपशम सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व अथवा क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति शुद्धोपयोग में ही होती है। आचार्यश्री जयसेन के समयसार के उपर्युक्त एक ही उद्धरण से यह .. अत्यन्त स्पष्ट हो जाता है कि - चौथे गुणस्थान में शुद्धोपयोग होता ही है। 47. प्रश्न : सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिए शुद्धात्मा के ध्यान को छोड़कर क्या अन्य कोई उपाय भी हो सकता है ? या एक मात्र उपाय शुद्धात्मा का ध्यान ही है ?
SR No.032827
Book TitleGunsthan Vivechan Dhavla Sahit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain, Ratanchandra Bharilla
PublisherPatashe Prakashan Samstha
Publication Year2015
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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