________________ (305) काउसग्गमनधारीजी ॥कावन ज्ञाननानेदनमीने, श्रुतज्ञानसेवो इकतारीजी // 3 // पमिक्कमणो दोयटककरीने, ज्ञान आराधोप्राणीजी॥मगसरादि षट् मासमां उचरो, आगममांहि गवाणीजी। जिनआणाधारक, सुखकारक, खरतरगण श्रुत खा. णीजी ॥श्रीजिनकृपाचंजसूरिपजणे, साशन देवी सुहाणीजी॥४॥ // इति पंचमीकी शुई संपूर्णा // अथ अष्टमीनी थुई लि०।। आठ प्रातिहारज जसुसोहे, मोहे नविजन चंदाजी // चंडप्रनु आग्म दिन सेवो अनुलवरसना कंदाजी // आठप्रमादतजीने, धारो परमातमपदसारोजी // छीपनंदिसरयात्रा करतां, अरिहंतध्यानप्रकारोजी ॥१॥रिषन अजित सुमति सुव्रतनमि, सुपारससंनव श्रायाजी // आदीश्वर दीक्षा अभिनंदन, नेमि पाससिवपायाजी // निन्नमासअष्टमी कल्याणक, तीनकालमां जाणोजी // आउजातिना कलशलेश्ने, स्नात्रकरे सुरराणोजी॥२॥ आचै प्रवचनमातापालो दोषसर्वने टालोजी॥ झानादिआग्आचारसेवीने, आतमतत्वनिहालोजी // वीरजिनेसरअर्थप्रकास, सूत्ररचैगणधारीजी // आपमतपधाराधिनविजन, आठवरस अधिकारीजी // 3 // पर्वतिथी मेंपोषधनाख्यो, सिद्धांतने जसु साखीजी॥ पमिकमणोतपजपआदरीये, देववंदनविधिराखीजी // आउमंगल आराधतां पावै, सुखसंपतिगुणनूरिजी // श्रुतदेवीसुपसायलहीने, श्रीजिनकृपाचंजसूरिजी // 4 // ॥इति आठम थुई संपूर्णा // . वृ० स्त० 25