________________ (373) अथ श्री जंबुद्वीपनी वा पूनमनि सज्झाय प्रारंभः॥ जंबुषीप सोहामणोरे लाल,लाख जोजन परिमाणरे, सुगुणनर, पूनिमशसिसम जाणियरे, लाल आकार एह पहिचाणरे, ॥सु० // 1 // वारिजाउं वाणि जिनतणीरे, // ला० // हुँ जावु वार हजाररे, // सु० // गु० // वीरजिणंदै दाखवीरे // सा॥ जंबूपन्नती महाररे सुगुण // // नवखेत्रे करि सोजतोरे, जरतादिकमनुहाररे // सु // कुलगिरिपरवत अंतरेरे // ला // रह्या मर्यादा धाररे // सु० // वा // 3 // महाविदेहे बिचराजतोरे, मेरुसुदर्शन जाणरे // सु०॥ लाख जोजन उचो कह्योरे, गजदंताचार पहिचाणरे // सुगु०॥ वा // 4 // षट् अह गिरिवर सहु नलारे, दोयसै गुणहत्तर एहरे / सु० // निवेनदी मोटी कहीरे ॥ला // बीजी परिवारनी तेहरे // सु० // वा० // 5 // कर्मजूमीमें मुनिवरारे, क्रोम सहस्स नव जाणरे // सु० // नवकोमी केवली नमुरे // ला उत्कृष्टो परिमाणरे // सु० // वा० // 6 // धर्म ध्यायनो जाणियेरे, चोयो नेद अनि रामरे // सु० // कृपाचन्छ ध्यातां श्रकारे // ला // पामें अविचल धामरे / सुगु०॥ वारि॥७॥ इति जंबूधीपनी वा पूनमनी सझाय संपूर्णा // अथ वीशस्थानक स्तुति लिख्यते // आदीसर अलवेसर जगपति विमनसायर चंदाजी, सेज मंझण दुःख बिहमण अद्लुतज्योति सोहंदाजी, सुखसंपत्ति कारण जगतारण सेवै सुरनर इंदाजी, करुणाकर जिनवर उपगारी कामित सुरतरु कंदाजी ॥१॥अरिहंत सिघ प्रवचन आचा