________________ (360 ) फातजी। जिनकटपन्नावअफंद / परिहार विशुद्धि तपतपे / तेवं. देहो देवचंदमुनींद // नवि० // 11 // // ढाल 3 जी हिव राणी पदमावती // एदेशी // रेजीव साहसआदरो / मतथा दीन / सुखमुःख संपदापदा / पूरवकर्माधीन ॥रे जीव०॥१॥ क्रोधादिकवशे रणसमे / सह्यामुःखअनेक / तेजोसमतामां सहे / तोतुज खरोविवेक ॥रे जीव० // 2 // सर्वअनित्य अशाश्वतो / जेहदीसेएह / धनतनसयणसगासढु / तिणस्युं श्योनेह // रे जीव० // 3 // जिमबालक वेलूतणा / घरकरीयरमंत / तेहबते अथवाढहे / निजनिजग्रह जंत ॥रे जीव ॥४॥पंथी जेमसराहमां / नदीनावनी रीति / तिमए परियणतोमिल्यो / तिणथीशीप्रीति ॥रे जीव० // 5 // ज्यांस्वार्थ त्यांसहुसगा / विणस्वार्थदूर / परकाजे पापेनले / तुंकेमहोयसूर ॥रे जीव०॥६॥ तजि बाहिरमेलावमो / मिलियोबहुवार / जेपूरवमिलियो नहि / तिणस्युं धरप्यार // रेजीव० // 7 // चक्रीहरिवल प्रतिहरी, तसविनवअमान / तेपणकालेसंहस्या / तुज धनश्योमान // रेजीव० // 7 // हाहाहुंतो तुंफिरे / परियणनी चिंत! नरकपड्यां कहे ताहरी / कोणकरसे चिंत ॥रे जीव० // ए॥ रोगादिकःखऊपने / मनअरतिमधरेव / पूरवनिजकृतकर्मनो। एअनुनवहेव / रेजीव० // 10 // एहशरीरअशाश्वतो। खिणमेंसीजंत / प्रीतिकिसितेऊपरे / जेस्वारथवंत / रेजीव // 11 // ज्यांलगे तुज इणदेहथी / पूरवसंग / त्यांलगेकोटीनपायथी। नवि थायनंग ॥रे जीव० // 12 // आगलपाग्लचिंहुँदिने,