________________ (352) // अथ षष्ठ मनोगुप्ति सज्झाय लिख्यते॥ // वैरागी अयोरे // एदेशी // मुनिमनवशकरोरे // मन ए आश्रवगेहो रे // मन ममता ऋषि मन्नथीरे // टालो यतिवर तेहोरे ।मु० // 1 // पुष्टतुरगचित्ततेकह्युरे। सो मोहनृपतिप्रधान। आर्त रोज्नुं देत्रएहरे / रोक तुं ज्ञान निधानोरे // मु० // 2 // गुप्तिप्रथम ए साधुनेरे / धर्म शुक्लनोकंद / वस्तुधर्मचिंतनरम्या रे / साधेपूर्णानंदोरे // मु० // 3 // योगते पुजलजोगरे / पांच अभिनव कर्म / योगवरगणाने कंपनारे / नवि ए आतमधर्म // मु०॥ // वीर्यचपलपरसंगमीरे / एह न साध. कपद / शान चरणसहकारनारे / वरतावे मनददरे / मु० // 5 // स विकटपकगुण साधुनारे / ध्यानीने न सुहाय / निर्विकटप अनुलवरसीरे / आत्मानंदीश्रायोरे // मु० // 6 // रत्नत्रयनी दतारे / एह समलव्यवहार // त्रिगुणवीर्यएकत्वतारे। निर्मलयात्माचारोरे // मु० // // शुक्लध्यान श्रुतलंबनी रे / एपण साधनदाव / वस्तुधर्म उरंगरे / गुणगुणी एकस्वनावोरे // मु० // // परसहायगुणवर्त्तनारे / वस्तुधर्म न कहाय // साध्यरसी तो किमग्रहेरे / साधु चित्त सहायो रे // मु० // ए॥ आत्मरुचि आत्मालयीरे / ध्याता तत्त्वअनंत // स्याहादज्ञानीमुनिरे / तत्त्वरमण उपशांतो रे ॥मु० // 10 // नवि अपवादरुचिकदारे / शिवरसिया अणगार // शक्तियथागमसेवतांरे / निंदे कर्मप्रचारोरे // मु० // 11 // शुद्ध सिघ निजतत्त्वतारे / पूर्णानंदसमाज, देवचं पर साधतारे / नमिये ते मुनिराजोरे // मु०॥१२॥इति षष्ठ मनोगुप्तिसहाय //