________________ (351) बा श्री ॥॥हरखघणै प्रजुनेटिया मा वाहममेर संघसाथ। वा० चनविहसंघपरिवारसुं माण यात्राकरि सुखसाथ बा० श्री // ए॥ जगणीसे बयासीये मा० माघवदि दिलधार // बा० कृपाचंद सूरिनावसुं मा० नेव्यो प्रजुदीदार बा श्री० // 1 // // इतिपदम् // अथ श्रीसिद्धाचलजी स्तवनं // जात्रीमा लाइआबूजीनी जात्राकरेजोएदेशी यात्रिमा नाश् श्रीसिघाचल नेटो, चिरसंचित उकृतमेटोरे, यात्रीमा नाइश्रीसिघाचल नेटो॥ एआंकमी एमहिमावंतविराजे, निरखंता पातिकलाजैरेया // 1 // श्रीवीरजिनेश्वर नाखै, शत्रुजयनी महिमा दाखैरेया० // 2 // पुंमरीक गणधारी, हांसीधाकर्म गणवारीरेया // 3 // पांमवप्रमुखजे सीधा, एगिरि फरसी सुखलीधारेया॥॥श्रीऋषनजिनेश्वरवंदो, चितधरी अधिक आनंदोरेया ॥५॥रायणतल पगलावारु, प्रजुवंदीवंचितसारुरेया० // 6 // पुंमरीक अतिदीपे, निरखतां पातिकजीपैरेया॥७॥ चोमुख जिनवरसोहे, देखता नविमनमोहेरेया // // अद्भुत बिंबविगजै, लेटैनविसिवसुखकाजैरेया // ए॥ पाजैचढतां जावे, गुणगातां वंचितपावैरेया // 10 // शेव्रुजयनदीअतिरुमी, एहनी महिमा नही कूमीरेया // 11 // नलकाकोलचेलणातलाइ, सिवम सिमसिलावरदाञया // 12 // एगिरि वरपूजैजावे, ते नरकनिगोद न जावैरेया० // 13 // दरसणरी आसघणेरी, ते सफली सुकृतसेरीरेया // 1 // अनुभव अमृत पीजै, कृपाचंद सदामुजदीजैरेया० // 15 // इतिपदम् //