________________ (200) पखाली, जवजयदूरनाख्यो, जिनविनयकरंतां, सुमतिश्रमृतरसचाख्यो // 7 // // ढाल आठमी॥ सिद्धारथरायकुलतिलोए, त्रिशलामातमटहारतो, अवनीतलेतुमेअवतस्याए, करवाश्रमउपगार // 1 // जयोजिनवीर. जीए, एकापी // मेंअपराधकस्याघणाए, कहेतांनलहुंपारतो, तुमचरणेश्राव्या जणीए, जोतारेतोतार // // जयो० // आशकरीने भावीयोए, तुमचरणेमाहाराजतो,आव्यानेनवेखशोए, तोकिमरहसेलाज ॥३॥ज०॥ कर्मथलुजणाकराए, जन्ममरणजंजालतो, कुंqएहथीननयोए, ओमावोदेवदयाल // 4 // ज० // आजमनोरथमुजफट्याए, नागपुःखदंदोलतो, तुगेजिनचोवीसमोए, प्रगट्यापुण्यकबोल, // 5 // ज० // लवनवविनयएतुमारमोए, जावनक्तितुमपायतो, देवदयाकरीदीजियेएबोधबीजसुपसाय // 6 // ज० // इति आराधना // . . ॥द० राग प्रभाति // . स्वामीरिसहेसरु दीढोंमेंसुरतरु सुनिजरकरी प्रनुसुजस लीजैस्वामी // 1 // आत्मगुण तुमतणो प्रगटसोहामणो सादि अनंत स्थिति सुखलहीजै स्वामी ॥शा ध्येयनाध्यानथी ध्यातानिजगुणलहे नावजलासथी कर्मजीजै स्वा०॥३॥ साध्यसाध कदशा अनुजवीश्रातमा बाध्य बाधक पणोदूरकीजै स्वा ॥धा एकप्रदेशमा अनंतसुखतेलह्यो तेहनोअंश अनुमोयदीब स्वा० // 5 // त्रजगतनाथतूं सेवकांसुखकर अवरदूजोनही