________________ शिलालेख-६५ गुजरात के राजा व मेवाड़ के राजा मुजराज में भयङ्कर युद्ध हुमा / उसमें हाथियों के संघर्ष से, उनके कपोलप्रदेशों के कटने से मद करने लगा / गुजरात का राजा भयभीत होकर युद्ध में पराजित हो गया एवं हरिणों को तरह पलायन करने वाले उसके सैनिकों को धवलराज ने उसी तरह शरण दी जिस प्रकार देवताओं को भगवान विष्णु शरण देते हैं / श्रीमद्द र्लभराज भूभुजिभुजैर्भुजत्यभंगां भुवं, दंडैमण्डनशौण्डचण्डसुभटैस्तस्याभिभूतं विभुः / यो दैत्यैरिव तारकप्रभृतिभिः श्रीमान्महेन्द्रःपुरा, सेनानीरिव नीतिपौरुषपरोऽनषोत्परां निर्व तिम् // 11 // नीति-पौरुष सम्पन्न इस धवल राजा ने अखंड पृथ्वी का अपनी भुजाओं से भोग करने वाले श्रीमान् दुर्लभराज के दण्डधारी योद्धाओं के द्वारा पराजित श्रीमान् महेन्द्रराजा को उसी प्रकार सुख दिया जिस प्रकार प्राचीनकाल में तारकासुर आदि राक्षसों से भयभीत इन्द्र को स्वामी कार्तिकेय ने सुख प्रदान किया था / / 11 / / यं मूलादुन्मूलयदुरुबलः श्रीमूलराजो नपो, दन्धिो धरणीवराहनपति यद्वद्विपः पादपं / आयातं भुवि कांदिशीकमभिको यस्तंशरण्यो दधौ, द्रष्ट्रायामिव रूढमूढमहिमा कोलो महीमण्डलम् / / 12 / / 1. प्रो. किलहॉर्न दुर्लभराज को चौहान राजा विग्रहराज का भाई मानते हैं। बिजोलिया एवं कीनसरिया के शिलालेखों में दुर्लभराज का नाम आया हुआ है / महेन्द्रराज नाडलाई के लेख के अनुसार चौहान लक्ष्मण ( लाखणसी) का पौत्र और विग्रहपाल का पुत्र होना चाहिए। यह लड़ाई काका-भतीजे की लड़ाई थी।