________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-६२ अर्थात्-वे जिनेश्वर देव तुम्हारी रक्षा करें जिनको प्रणाम करते समय उनके चरण-कमलों के नखों में प्रतिबिम्बित इन्द्र की हजार आँखें ग्यारह हजार हो जाती हैं क्योंकि निर्मल आत्माओं के साथ मिलन किनके लिए गुणकारी नहीं होता अर्थात् सब के लिए गुणकारी होता है / / 2 / / .....क्त.....नासत्करीलो ? [प] शोभितः / सुशेखर'लौ, मूनि रूढ़ो महीभृतां // 5 // अन्वय-महीभृतां मूनि रूढः। .. शेष अस्पष्ट है। अर्थ-राजाओं के सिर पर सवार अर्थात् राजाओं को जीतने वाला // 3 // अभिविभ्रद्रुचि कान्तां, सावित्री चतुराननः / हरिवर्मा बभूवात्र, भूविभुर्भुवनाधिकः / / 4 / / अर्थ-सर्वाङ्ग सुन्दर सावित्री के पति ब्रह्मा की तरह जगत् में प्रसिद्ध हरिवर्मा पृथ्वी का पति हुअा। उसकी रानी का नाम रुचि था // 4 // सकललोकविलोचनपंकजस्फुरदनम्बुदबालदिवाकरः / रिपुवधुवदनेन्दुहृता तिः समुत्पादि विदग्धनृपस्ततः / / अर्थ-सम्पूर्ण संसार के नेत्र कमल को खिलाने वाले मेघरहित बालसूर्य के समान हरिवर्मा के विदग्धराज उत्पन्न