________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-४६ गुजरात के राजाओं, चौहान राजकुमारों तथा चित्तौड़ के राजा धरणीवराह को शरण दी एवं उनकी रक्षा की। किसी राजा का मान मर्दन करने के लिए भी युद्ध होना सामान्य बात थी। हस्तिकुण्डी के राठौड़ों ने भी दुर्लभराज चौहान और धरणोवराह का मान मदित किया था। सम्पूर्ण प्रजा का संरक्षण राजा का कर्तव्य होता है; इस नीति का निर्वाह हस्तिकुण्डी के राष्ट्रकूटों ने भी किया। जिस प्रकार सूर्य की कठोर किरणों से सन्तप्त लोग तापनिवारण हेतु विशालवृक्ष का आश्रय लेते हैं वैसे ही राजसमुदाय से अथवा अन्य किसी भी प्रकार से पीड़ित जनता को धवलराज ने शरण दी थी। राजा का सच्चरित्र होना अत्यावश्यक था, वह अनन्य उद्धारक और सत्कार्य के भार को वहन करने वाला माना जाता था। राठौड़ राजा शीलवान, करुणाशील और दानवीर थे। वृद्ध होने पर वे निस्सङ्ग होकर अपने पुत्रों को राज्य सौंप दिया करते थे। राठौड़ धवल ने अपना राज्य अपने युवराज बालाप्रसाद को सहर्ष सौंपा था। राठौड़ अत्यन्त कुशल वास्तुविद् और नगर-निर्माता थे। उनकी राजधानी हस्तिकुण्डी कुबेर की अलका के समान समृद्ध थी। उनकी नीतिनिपुणता एवं प्रजापरायणता के कारण वह नगरी धनाड्य पुरुषों से भरी थी। नगरी में बहुत सुन्दर भवन और देवालय बने हुए थे; उन पर स्वर्णकलश चमकते थे। शासकों ने प्रजां के मनोरंजन के लिए मनोहारी उद्यानों के बीच फवारों का भी निर्माण किया था / 1. शिलालेख सं० ३१८,श्लोक सं० 14-15 / 2. वही, एलोक सं० 15 // 3. वही, श्लोक सं० 23-24 /