________________ हस्तिकुण्डी का इतिहास-२२ प्राचार्य महाराज श्री कक्कसूरिजी ने उपदेश देकर इस नगर में 26 जैन मन्दिरों का निर्माण करवाया। शायद ये 26 देवकुलिकाएं ही होंगी जो इस मन्दिर में बनी होंगी। आचार्यश्री ने यहाँ 500 व्यक्तियों को दीक्षित किया तथा यहाँ के राजाओं तथा सामन्तों को जैनधर्म का उपदेश दिया। तपागच्छ वंशावली के कुलगुरुत्रों ने लिखा है कि विक्रम सं. 188 में प्राचार्य महाराज श्री सर्वदेवसूरिजी अपने 500 शिष्यों के साथ विहार करते हुए यहाँ पधारे / हस्तिकुण्डी नगर में प्रवेश करते समय उन्होंने राजकुल के श्री जगमाल को घोड़े पर शिकार लेकर आते हुए देखा। जगमाल ने आचार्यश्री को देखकर आँखें नीचे करलीं। दूसरे दिन महाराजश्री ने राज्यसभा में उपदेश देते हुए कहा कि वीर पुरुषों का कर्तव्य निर्बलों का रक्षण है न कि भक्षण / राजा जगमालजी को यह बात लग गई। उन्होंने तथा उनके पुत्रों ने अहिंसा धर्म अङ्गीकार कर लिया। उनके वंशज झामड़ या झमड़ गोत्र से जाने जाते हैं / इसो सम्बन्ध में पार्श्वनाथ भगवान की पट्टावलियों को देखने से ज्ञात होता है कि इस परम्परा के अधोलिखित आचार्यों ने यहाँ विहार कर शासन की प्रभावना बढ़ाईप्राचार्य सिद्धसूरिजी (370 वि. से 400 वि.) ये जावालिपुर के मोरख गोत्रीय पुष्करणा शाखा के श्रेष्ठी जगाशाह के पुत्र थे। इनको माता का नाम जैतीदेवी था। इन जगाशाह ने संघ निकाल कर संघवी की उपाधि प्राप्त की थी। इनके पुत्र का नाम ठाकुरसी था। इन्हीं ठाकुरसी ने देवगुप्तसरिजी से दीक्षा अङ्गीकार की। इनका प्रथम नाम मुनि अशोकचन्द्र था। बाद में इनका नाम सिद्धस रि हुआ। आचार्यप्रवर ने अनेक मन्दिर बनवाये एवं उनकी प्रतिष्ठा