________________ शिलालेख-८५ यावद्भूधरभूमिभानुभरतं भागीरथी भारती, भास्वभानि भुजंगराजभवनं भ्राजद्भवांभोधयः / तिष्ठन्त्यत्र सुरासुरेन्द्रमहितं जैनं च सच्छासनं, श्रीमत्केशवसूरिसंततिकृते तावत्प्रभूयादिदम् // 21 / / जब तक पृथ्वी, पर्वत, सूर्य भरतखंड, गङ्गा, सरस्वती, प्रकाशमान तारे, शेषनाग का स्थान, क्षीरसागर और संसारसागर है तब तक देवेन्द्रों-असुरेन्द्रों से पूजित यह जैनशासन श्रीमान् केशवसूरिजी' की परम्परा के लिए कायम रहे / / 21 / / इदं चाक्षयधर्मसाधनशासनं, श्रीविदग्धराजेन दत्तं, संवत् 673 श्रीमम्मटराजेन समर्थित संवत् 666 / सूत्रधारोद्भव शतयोगेश्वरेण उत्कीर्णेयं प्रशस्तिरिति / यह अक्षय धर्म साधन रूप प्राज्ञा श्रीविदग्धराज ने संवत् 673 वि. में दी एवं श्री मम्मटराज ने 666 विक्रमी में इसका समर्थन किया / शतयोगेश्वर सोमपूरा ने इसे पत्थर पर खोदा। 1. ये केशवसूरि वासुदेवाचार्य ही हैं / गोड़वाड़ में विशेषकर नाडलाई में जसिया, केसिया के सम्बन्ध में कितनी ही दन्तकथाएँ चलती हैं। ये दन्तकथाएँ व चमत्कार वासुदेवसूरि के चरित्र से मेल खाती हैं / जसिया से यशोभद्रसूरि व केसिया से केशवसूरि या वासुदेवसूरि का ही ग्रहण होता है / इनकी यशोभद्रसूरि के साथ स्पर्धा हो गई थी। ये ही केशवसूरि अथवा वासुदेवसूरि हसतिकुण्डी गच्छ के उत्पादक थे / ऐतिहासिक रास संग्रह भाग द्वितीय पृष्ठ 63 /