________________ शिलालेख-८३ . कपास, गुग्गुल, कुंकुम, मजीठ आदि वस्तुओं के प्रत्येक भार के लिये दस-दस पल राज्य को देनी चाहिये / / 13 // आदानादेतस्माद्भागद्वयमहतः कृतं गुरुणा / शेषस्तृतीयभागो विद्याधनमात्मनो विहितः // 14 // इस आय के दो भाग मेरे गुरु ने मन्दिर के लिये निश्चित किये हैं तथा शेष तीसरा भाग (गुरु ने स्वयं के) विद्याधन के लिए रखा है / / 14 / / राज्ञा तत्पुत्रपौत्रैश्च गोष्ठ्या पुरजनेन च / गुरुदेवधनं रक्ष्यं नोपेक्ष्यं हितमीप्सुभिः // 15 // राजा को, उसके पुत्रों तथा पौत्रों और समिति तथा नगरनिवासियों को गुरु एवं देव के धन की रक्षा करनी चाहिये। स्वहितार्थी को उसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए / / 15 / / दत्ते दाने फलं, दानापालिते फलम् / भक्षितोपेक्षिते पापं गुरुदेवधनेऽधिकम् // 16 // दान देने में फल है, दान से भी अधिक उसके पालन में फल है। गुरु तथा देवता के धन को खाने तथा उसकी उपेक्षा करने में अधिक पाप है / / 16 / / गोधूममुद्गयवलवणरालकादेस्तु मेयजातस्य / द्रोणं प्रति मारणकमेकमत्र सर्वेण दातव्यम् // 17 //