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________________ षष्ठः सगः 75 अन्वयः-भैमी-बिनोदाय मुदा सखीभिः भुवि कल्पितानाम् तदाकृतीनाम् मध्ये मणिवेदिकायाम् स्फुटम् उदीतम् अपि तस्य अनुबिम्बम् न अतकिं / टीका-भैम्याः दमयन्त्याः विनोदाय मनोरञ्जनाय मुदा हर्षेण सखीभिः मुवि भूतले कल्पितानाम् रचितानाम् चित्रितानामिति याबत् तस्य नलस्य आकृतीनां प्रतिरूपाणाम् (10 तत्पु० ) मध्ये मणिखचिता वेदिका मणिवेदिका ( मध्यमपदलोपी स० ) तस्याम् स्फुटम् स्पष्टं यथा स्यात्तथा उदीतम् प्रकटितम् तस्य नलस्य अनुबिम्बम् प्रतिबिम्बम् न अकि-न तकितम् लक्षितमिति यावत् नल-प्रतिरूपाणां मध्ये सत्यमपि नलप्रतिबिम्बं सत्यत्वेन न गृहीतमिति भावः // 74 // व्याकरण-विनोदाय वि + /नुद् + धन् / मुद् मुद् + क्विप् ( भावे ) / आकृतिः आ + /कृ + क्तिन् / उदीतम् उत् + Vई + क्त ( कर्तरि ) / वेदिकायाम् वेदी एवेति वेदी + कन् ( स्वाथें ) + टाप , ह्रस्व / अतकित + लुङ् ( कर्मवाच्य ) / अनुवाद-दमयन्ती के मनोविनोद हेतु सहर्ष सखियों द्वारा भूमि पर खींचे नल के चित्रों के मध्य मणि-जडित वेदी पर स्पष्ट पड़ा हुआ उन ( नल ) का प्रतिबिम्ब देखने में नहीं आया // 74 // ___टिप्पणी-भूमि पर सखियों द्वारा बनाई नलकी आकृतियां ऐसी हूबहू थीं कि इनमें और नल के प्रतिबिम्ब में कोई भेद ही नहीं दिखाई दे रहा था, अतः वह पृथक्त्वेन उनकी बुद्धि में नहीं आ सका यद्यपि सच्चा था। विद्या. धर यहाँ मीलित अलंकार कहते हैं। मीलित वहाँ होता है जहाँ एकवस्तु समान चिह्न से दूसरी वस्तु को छिपा देती है। इसमें एक वस्तु प्रबल और एक कम प्रबल होती है लेकिन मल्लिनाथ यहाँ सामान्य अलंकार मान रहे हैं। सामान्य वहाँ होता है जहाँ गुणसाम्य से वस्तुओं में ऐकात्म्य हो जाता है / यहाँ चित्रों में समान चिह्नों से प्रतिबिम्ब को छिपा दिया है अथवा दोनों में गुण-साम्य से .ऐकात्म्य है-यह संदिग्ध होने से हम दोनों का संदेह संकर ही कहेंगे। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। हताशकीनाशजलेशदतीनिराकरिष्णोः कृतकाकूयाच्याः / भैम्या वचोभिः स निजां तदाशां न्यवर्तयदूरमपि प्रयाताम् // 75 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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