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________________ 2 नैषधीयचरिते समझो / दूसरे तुम्हारे हृदय में स्थित काम का चिह्नभूत मकर भी जब वही है, तो मकरी को भी उसके प्रियतम से मिला देना उचित ही है। हृदय में काम के साथ मकर के रहने के सम्बन्ध में पीछे चौथे सर्ग का श्लोक ३५-'सतत तद्गत हृच्छयकेतुना हतमिव स्वतनूधनर्षिणा / ' देखिए / विद्याधर 'कुच-कुम्भयोः' में रूपक कह रहे हैं, किन्तु हमारे विचार से उपमा ही ठीक रहेगी, क्योंकि विशे. षता यहाँ कुचों को ही दी गई है कुम्भों को नहीं'। शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है / शारी चरन्ती सखि ! मारयैतामित्यक्षदाये कथिते कयापि / यत्रस्वघातभ्रमभोरुशारीकाकूत्थसाकूतहसः स जज्ञे / / 71 / / अन्वयः-यत्र 'हे सखी! चरन्तीम् एताम् शारीम् मारय' इति कया अपि अक्ष-दाये कथिते सति स स्वघात...हस: जज्ञे / टोका~~यत्र सभायाम् हेसखि आलिj चरन्तीम् गृहाद् गृहान्तरं गच्छन्तीम् अथ च भ्रमन्तीम् शारोम् अक्षोपकरणविशेषम् अथ च सारिकाम् पक्षिविशेषमितियावत् मारय जहि' इति एवं कया अपि कयाचित् युवत्या अक्षाणां पाशकानां दाये दाने प्रक्षेपे इत्यर्थः ( 'दायो दाने योतकादिधन' इति विश्वः ) कथिते उक्ते सति स नलः स्वस्याः आत्मनः घातः मारणम् तस्य भ्रमः भ्रान्तिः (उभयत्र (10 तत्पु ) तस्मात् भोरु: भीता (पं० तत्पु. ) या शारी सारिका तस्याः या काकु: विकृतकण्ठस्वरः ( ष० तत्पु० ) तस्मात् उत्तिष्ठतीति तयोक्तः ( उपपद तत्पु०) साकूतः आकूतेन अभिप्रायेण सहितः ( व० वी० ) हसः हासः (कर्मधा०) यस्य तथाभूतः ( ब० बी० ) जज्ञे जातः / अक्षक्रीडायां शारीम् (अक्षोपकरणम् ) उपलक्ष्य तां हन्तुं कामपि सखीम् प्रेरयन्त्याः सख्याः वचनेन 'इयं मां हनिष्यतीति भ्रमेण भीता शारी ( पक्षिविशेषः ) ‘मा तावत्' मा तावदिति सकरुण-कण्ठध्वनि चकार, तमभिप्रेत्य च नलो जहासेति भावः / / 71 / / व्याकरण-दायः /दा + घञ् / घात: हिन् + णिच् + घञ् / भीरु भेतुं शीलुमस्येति + /भी + छ। उत्थः उत्तिष्टतीति उत् + स्था, क। हस: हस् + अप् ( भावे ) ( 'स्वन-हसोर्वा' 3 / 3 / 62 ) / जज्ञे जन् + लिट् / ___अनुवाद-जहाँ-हे सखी ! जा रही इस शारी ( चौरस = चौपड़ की गोटीं) को मार दे' / यों पासा डालते समय किसी ( युवति ) के कहने पर वह ( नल) घूमती हुई शारी ( शारिका = मैना ) की अपने मारे जाने के भ्रम के भय द्वारा उत्यन्न विकृत कण्ठ-ध्वनि के कारण साभिप्राय हँस दिये / / 71 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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