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________________ 584 नेधीयचरिते वैदर्भीकेलिशैले (2 / 105) व्यतरदथ (4 / 119) व्यवत्त धाता (754) व्यर्थीकृतं पत्रर० (316) व्यर्थीभवद्भाव (8 / 19) श्रवणपुरयुगेन (6 / 112) श्रवणपूरतमाल (4156) श्रितपुण्यसरः (2039) श्रियमेव परं (2 / 18) श्रियस्तदालिङ्गन (3 / 31) श्रियास्य योग्या (1931) श्रियो नरेन्द्रस्य (3 / 36) श्रीभरानतिथि० (5 / 23) व्रज धृति त्यज (4 / 105) व्रजन्तु ते तेऽपि (9 / 154) शतशः श्रुतिमा० (2054) शरैः प्रसूनैस्तुदतः (8066) शरैरजस्रं कुसु० (875) शशकलङ्क भयं० (4 / 55) शशाक निह्नोतु० (1152) शशिमयं दहनास्त्र० (4 // 38) शस्ता न हंसाभि० (3 / 9) शारी चरन्तीं सखि (671) शिखी विधाय (975) शिरीषकोषादपि (47) शिरीषमृद्वी (9 / 58) शीघ्रलशितपथ (5 / 58) शुद्धवंशजनितो (5 / 10) शुद्धान्तसंभोग (3393) शुमाष्टवर्गस्त्वद (9 / 119) शुभूषिताहे (6 / 94) शृण्वन् सदार (3 / 28) शैशवव्ययदिनां (5 / 33) शोभायशोभिजित (8 / 34) श्रवः प्रविष्टा इव (3 / 74) श्रुतः स दृष्टश्च (3 / 82) श्रुतिः सुराणां (9 / 148) श्वस्तस्या प्रिय० (9 / 158) षड़तवः कृपया (4 / 92) संख्यविक्षत० (5 / 25) संग्रामभूमीषु (3 / 38) संघट्टयन्त्यास्त० (6 / 28) संचीयतामाश्रुत० (3.83) संज्ञाप्य नः स्वध्वज (3 / 34) संपदस्तव गिरा (5 / 22) संप्रति प्रतिमुहूर्त (5 / 27) संभुज्यमानाध (7342) संसारसिन्धावनु (8 / 46) सकलया कलया (4 / 72) सखि जरां परिपृच्छ (4 / 69) सखीशतानां सरसैः (6 / 58) स गरुद्वनदुर्ग (2 / 4) स जयत्यरि० (2016) सत्येव साम्ये (7 / 14)
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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