________________ 518 नैषधीयचरिते सेनायाः पश्चाद्वर्ती भाग इतियावत् तस्मिन् विप्रहम् युद्धम् ( स० तत्पु० ) पाणिग्राहकृत्यम् सेनायाः पृष्ठभागे आक्रमणमिति यावत् मुधा व्यथं मा विधात् मा कार्षीत् / असमीक्ष्य कृते वरणे पश्चात्तापः त्वा न च्याप्नुयादिति भावः // 134 // __व्याकरण-अमराः म्रियन्ते इति /मृ + अच् ( कर्तरि ) न मरा इत्यमरा। समोहा सम् + ईह + अ + टाप् / किंकरः किम् करोमीति किम् + / कृ + अच / ईशिषे / ईश् + लट् ( म० पु० ) इडागम / मा विधात् मा वि + Vधा+ लुङ् लकार में माङ् का योग होने से अडागम का निषेध / अनुवाद-"ये देवता लोग अनन्य निष्ठा से तुम्हें ही केवल चाह रहे हैं। मुझे भी ( तुम ) अपना दास बना सकती हो / सोच-समझकर काम करना ताकि किये पर पश्चात्ताप तुम पर यों ही पीछे से आक्रमण न कर दे' / 134 / / टिप्पणी--नल के कहने का भाव यह है कि जल्दबाजी में किए वरण पर बाद को तुम्हें यों पछताना न पड़ जाय कि मैंने देवताओं का वरण करके ठीक नहीं किया; नल का वरण करना चाहिए था अथवा नल का वरण करके मैंने ठीक नहीं किया, देवताओं का वरण करना चाहिए था। ठीक विवाह न करके जन्म भर का रोना हो जाता है। अंग्रेजी की कहावत है-To marry in hasta is to repent attast विद्याधर ने यहाँ अतिशयोक्ति कही है, क्योंकि पीछे से आने वाले अनुताप का पाणि-विग्रह के साथ अभेदाध्यवसाय है। 'अमी' 'समी' में पदान्तगत अन्श्यानुप्रास है। विद्याधर छेक भी कह रहे हैं, जो हमें कहीं नहीं दीख रहा है / 'चाय' 'कार्य' में एक जगह अनुस्वार न होने से वह नहीं बनने पा रहा है / हाँ, वृत्त्यनुप्रास है // 134 // उदासितेनैव मयेदमुद्यसे भिया न तेभ्यः स्मरतानवान्न वा। हितं यदि स्यान्मदसुव्ययेन ते तदा तव प्रेमणि शुद्धिलब्धये // 135 / / अन्वयः-(हे भैमि ! ) उदासितेन एव मया ( त्वम् ) इदम् उद्यसे, तेभ्यः भिया न, स्मर-तानवात् (भिया) वा न / मदसु-व्ययेन ते हितम् यदि स्यात् तदा तव प्रेमणि शुद्धि-लब्धये ( असुव्ययः स्यात् ) / टोका-(हे भैमि ! ) उदासितेन उदासीनेन तटस्थेनेति यावत् एव मया त्वम् इदम् पूर्वोक्तं सुसमीक्ष्य वरणीयमित्यर्थः उद्यसे कथ्यसे तेभ्यः देवेभ्यः भिया