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________________ नवमः सर्गः 473 है, वह उसे भी सौन्दर्य में पछाड़ देने वाले नल के देश में खार के मारे क्यों जायगा, वे उसके शत्रु जो ठहरे। दूसरे, काम अतिवाम-अतिक्रान्ताः वामा: स्त्रियो येन तथाभूतः-अर्थात् स्त्रियों का कहना ठुकरा देने वाला है। इस महाशत्रु से दक्षिण पवन ही भला है। वह भी निःस्सन्देह विरही-जनों का शत्रु ही है, लेकिन दक्षिण-उदारतापूर्ण है। प्रार्थना मान जाएगा, क्योंकि मेरे मर जाने पर वह अपनी शत्रुता त्याग देगा। साधारणतः शत्रुता जीते जी ही होती है, मृत्यु के बाद नहीं रहती, 'दक्षिण' लोगों में तो खास बात है। प्रियतम उत्तर-दिशा-स्थित निषध-देश में रहते हैं। दक्षिण पवन मलयानिलमृत्यु के बाद उड़ाकर मेरी राख उनके चरणों तक पहुंचा देगा। मैं न सही, मेरी राख भी उन तक पहुँच जाएगी तो मैं अपने को कृतकृत्य समझ लूंगी। विद्याधर के अनुसार यहाँ अतिशयोक्ति है, क्योंकि अतिवाम और दक्षिण के विभिन्न अर्थों का अभेदाध्यवसाय हो रखा है। अन्तिम 'वर... घिः' वाला वाक्य पूर्वोक्त विशेष बात का समर्थन कर रहा है, अतः अर्थान्तरन्यास भी है। 'तया' 'यया' में पादान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास अमूनि गच्छन्ति युगानि न क्षणः कियत्सहिष्ये नहि मृत्युरस्ति मे। स मा न कान्तः स्फूटमन्तरुज्झिता न तं मनस्तच्च न कायवायवः // 14 // - अन्वयः-अमूनि युगानि गच्छन्ति, न ( तु अयम् ) क्षणः ( गच्छति)। कियत् सहिष्ये, हि मे मृत्युः न अस्ति / स कान्तः तु अन्तः माम् स्फुटम् न उज्झिता, मन च तम् न / उज्झिता ), कायवायवः च तत् न ( उज्झितारः ) / टीका-- अमूनि एतानि युगानि कृतयुगादीनि काल-क्रमेण गच्छन्ति व्यतियन्ति किन्तु अयम् एष मे क्षण: वियोगस्य लधुतमोऽपि कालभेदः न गच्छति, वियोगस्य मे एकोऽपि क्षणो युगसहस्रायमाणः सन् न व्यत्येतीत्यर्थः / कियत् कियत्परिमाणम् अहं सहिष्ये दुःखमिति शेषः / हि यस्मात् मे मृत्युः मरणम् न अस्ति, सति सृत्यो दुःखावसानं स्यात् / स प्रसिद्धः कान्तः प्रियो नलः तु अन्तः अन्तरात्मनि स्थूलशरीरमध्ये-इत्यर्थः साम् स्फुटम् स्पष्टं यथा स्यात्तथा न उज्झता उज्झिष्यति ममान्तरात्मानं न त्यक्ष्यतीत्यर्थः मम मनः च तम् नलम् न उज्झिता, कायस्य देहस्य वायवः प्राणाः (10 तत्पु० ) च तम् मनः न उज्झितारः / विचित्रायां परिस्थित्यां पतिताऽस्मीति हा कष्टम् मिति भावः // 64 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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