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________________ 42. नैषधीयचरिते यदि स्वमुद्वन्धुमना विना नलं भवेर्भवन्तों हरिरन्तरिक्षगाम् / दिविस्थितानां प्रथितः पतिस्ततो हरिष्यति न्याय्यमुपेक्षते हि कः / / 4 / / अन्वयः-नलम् विना यदि ( त्वम् ) स्वम् उद्वन्धुमनाः भवः, ततः अन्तरिक्षगाम् भवन्तीम् दिवि स्थितानाम् प्रथितः पतिः हरिः हरिष्यति / न्याय्यम् हि कः उपेक्षते? टीका-लम् विना अन्तरेण नलाप्राप्तौ इत्यर्थ: यदि चेत् त्वम् उत उपरि बन्धुम् मनो यस्य तथाभूः (ब० वी० ) भवेः स्याः मरणार्थं गले बन्धनं दत्त्वा आकाशे लम्बितुमिच्छसीत्यर्थः तत् तहि अन्तरिक्षे आकाशे मच्छतीति तथोक्ताम् (उपपद तत्पु० ) आकाशस्थाम् आकाशे लम्बमानामित्यर्थः भवन्तीम् त्वाम् दिवि आकाशे स्थितानां वर्तमानानां पदार्थानाम् प्रथितः प्रसिद्धः पतिः स्वामी हरिः इन्द्रः हरिष्यति नेष्यति / न्याय्यम् न्यायतः प्राप्तम् वस्तु हि खलु कः जनः उपेक्षते प्रमादतः परित्यजति न कोंऽपीति काकुः / / 46 / / व्याकरण-उद्वन्धुमनाः 'तुम-काममनसोरपि' से तुमुन् के म का लोप / अन्तरिक्षगाम् अन्तरिक्ष + गम् + ड (कर्तरि )+टाप / न्याय्यम् न्यायादनपेतमिति न्याय + यत् / अनुवाद-"नल के विना यदि तुम अपने को फांसी देना चाहो, तो अन्तरिक्ष में लटकी हुई तुम्हें अन्तरिक्ष में रहनेवालों के प्रसिद्ध स्वामो इन्द्र ले जाएंगे। न्याय से प्राप्त ( वस्तु) की सचमुच कोन उपेक्षा करे ?" // 46 // टिप्पणी-पीछे श्लोक 34 में दमयन्ती ने नल का उत्तर देते हुए कहा था कि यदि नल मेरा वरण नहीं करेंगे, तो मैं फाँसी खालूंगी, या अग्नि में भस्म हो जाऊंगी या पानी में छलांग लगा दूंगी। इसी का उत्तर यहाँ नल चार श्लोकों में दे रहे हैं। "फाँसी खाती हुई अन्तरिक्ष में लटकी तुम्हें इन्द्र ले लेगा।' यास्काचार्य के अनुसार केवल तीन देवता होते हैं जिनके अधिकार में तीन लोक इस तरह रहते हैं :-'अग्निः इन्द्रो पृथिवोस्थान: वायुर्वान्तरिक्षस्थानः, सूर्योधु स्थानः' / अन्तरिक्षस्थानीय सभी पदार्थ इन्द्र के अधिकार में आ जाते हैं। इस प्रकार अन्तरिक्ष में स्थित दमयन्ती का इन्द्र की हो जाना स्वाभाविक ही है। यहाँ इन्द्र की हो जाने का कारण बता देने से काव्यलिङ्ग है। 'न्याय्यभुपेक्षते हि कः' यह सामान्य वाक्य पूर्वोक्त विशेष का समर्थन कर
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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