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________________ नैषधीयचरिते विहाय हा सर्वसपर्वनायकं त्वया धतः किं नरसाधिमभ्रमः / मुखं विमुच्य श्वसितस्य धारया वथैव नासापथधावनश्रमः / / 44 / / अन्वयः-(हे भैमि !) त्वया सर्व-सुपर्व-नायकम् विहाय नर-साधिम-भ्रमः किम् धृतः ( इति ) हा! श्वसितस्य धारया ( का ) मुखम् विमुच्य वृथा एव नासा 'श्रमः (धृतः) / टीका-हे भैमि ! त्वया सर्वे निखिलाश्च ते सुपर्वाण: देवाः ( कर्मधा० ) तेषाम् नायकम् नेतारम् देवेन्द्रमित्यर्थः विहाय परित्यज्य नरे मनुष्ये अथ च रलयोरभेदे नले साधिमा साधुत्वम् ( स० तत्पु० ) तस्य भ्रमः भ्रान्तिः (10 तत्पु० ) किम् किमर्थम् धृतः धारितः ? इति हा ! कष्टम् / श्वसितस्य श्वासोच्छवासस्य धारया परम्परया (का) मुखम् वक्त्रम् विमुच्य विहाय वृथा एव व्यर्थमेव नासायाः नासिकायाः पन्था: मार्ग (ष० त पु० ) तेने यद् धावनम् शीघ्रगमनम् तेन श्रमः ( उभयत्र तृ० तत्पु० ) तज्जनितक्लमः इत्यर्थः धृतः इति पूर्वतोऽनुवर्तते / यथा श्वासोच्छ्वासपरम्परा सुखेन गमनागमनसाधनीभूतं मुखमार्ग विहाय वृथैव कष्टेन गमनागमनसाधनीभूतं नासिकामार्गमाश्रयति तद्वत् त्वमपि सर्वसुखभण्डारं देवेन्द्रमपहाय वृथैव नानाक्लेशभरितनरयोनिधारिणं नलं साधुत्वभ्रमेणेच्छसीति भावः // 44 / / __व्याकरण-नायकम् नयतीति नी + ण्वल व को अक आदेश। साधिमा साधो: भाव इति साधु + इमनिच् / श्वसितस्य श्वस् + क्त ( भावे ) / __ अनुवाद-( हे दमयन्ती ) तुम सभी देवताओं के स्वामी ( इन्द्र ) को छोड़कर नर ( योनि के ) नल के अच्छे होने का भ्रम क्यों अपनाये हुये हो? यह दुःखकी बात है। सांसों के सिलसिले का मुख कोछ ोड़कर नाक के मार्ग से शीघ्र आने-जाने का श्रम अपनाना व्यर्थ है // 44 / / टिप्पणी-दमयन्ती! तुम व्यर्थ भ्रम में पड़ी हुई हो कि देव-नायक इन्द्र की अपेक्षा नर नल अच्छा बर रहेगा। इसलिए इस मिथ्या म्रम को छोड़ दो और इन्द्र का वरण करो। इसी में तुम्हारा कल्याण है। यहाँ श्लोक में दो समानान्तर विशेष वाक्यों का परस्पर विम्बप्रतिबिम्ब भाव होने से दृष्टान्तालंकार है। 'सर्वपवं' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है // 44 / / तपोऽनले जुह्वति सूरयस्तनूदिवे फलायान्यजनुविष्णवे / करे पुनः कर्षति सैव विह्वला बलादिव त्वां वलसे न बालिशे ! // 45 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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