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________________ 354 नैषधीयचरिते - टिप्पणी-स्वर्ण शब्द से हम देवताओं की भेंट-पूजा में चढ़ाये जाने वाले सुवर्ण ले रहे हैं। देवताओं का अभिप्राय यह है कि सुवर्ण-पर्वत सुमेरु पर रहने वाले हम लोगों के आगे सुवर्ण का कोई महत्त्व ही नहीं। हाँ, सुवर्ण से बढ़कर वस्तु हमें मिलनी चाहिए और वह तुम्हारे अंग ही हो सकते हैं / भाव यह निकला कि तुम्हारा अंग स्वर्ण से अधिक गोरा-पीला है। मल्लिनाथ और नारायण ने 'स्वर्णैः' का अर्थ स्वर्णपुष्पैः स्वर्ण-कमलैः किया है, लेकिन स्वर्णकमल तो स्वर्नदी में ही होते हैं भू में नहीं, जहाँ दमयन्ती रह रही है। यदि उनका अभिप्राय स्वर्णिल अर्थात् पीले फूलों से हो, तो बात दूसरी है / विद्याधर यहाँ भी अतिशयोक्ति कह गये हैं लेकिन हमारे विचार से अभिमान चूर करना टक्कर लेना आदि प्रयोग दण्डी के अनुसार सादृश्यपरक होने से यहाँ उपमा है / 'पीतपीत' में यमक, 'पाणि' 'पाणिः' और 'अङ्ग' 'अङ्गा' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। वयं कलादा इव दुर्विदग्धं त्वद्गौरिमस्पर्वि दहेम हेम / प्रसूननाराचशरासनेन सहैकवंशप्रभवभ्रु ! बभ्रुः / / 99 // अन्वयः-हे प्रसूननाराच-शरासनेन सह एकवंशप्रभवभ्रु ! वयम् कलादा इव त्वद्-गौरिम-स्पर्धि दुर्विदग्धम् हेम दहेम / टोका-प्रसूनानि पुष्पाणि एव नाराचाः बाणाः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतस्य (ब० वी० ) कामस्येत्यर्थः शरासनेन धनुषा सह एकस्मिन् वशे कुले ( कर्मधा० ) प्रभव: जन्म ( स० तत्पु० ) ययोः तथाभूते (ब० वी० ) भ्रवी ( कर्मधा० ) यस्याः ( ब० वी० ) तत्सम्बुद्धी कामबाण-सदृश-भ्रूवति ! दमयन्ति ! इत्यर्थः वयम् इन्द्रादयः कलादाः स्वर्णकाराः ( 'कलादा रुक्मकारकाः' इत्यमरः) इव तव यो गौरिमा गौरत्वम् (10 तत्पु० ) तेन स्पर्धते स्पर्धा करोतीति तथोक्तम् ( उपपद तत्पु० ) अत एव दुर्विदग्धम् दुविनीतम् मूर्खमिति यावत् वभ्र पिङ्गलम् ( 'बभ्र स्यात् पिङ्गल' इत्यमरः ) हेम सुवर्णम् बहेम / त्वदेहकान्तिः सुवर्णकान्त्यपेक्षयाऽधिकसुन्दरीति भावः // 99 // व्याकरण-नाराचाः नरान् आचमन्तीति नर + आ + /चम् + ड, नराचा एवेति नराच + अण् ( स्वार्थे ) नाराचाः। शरासनम् शरा आसतेऽत्रेति शर + /आस् + ल्युट् ( अधिकरणे ) / प्रमवा प्र + /भू + अप् ( भावे ) / ०वभ्र !
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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