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________________ अष्टमः सर्गः 327 लेकर छ श्लोकों तक अग्निदेव की ओर से प्रणय-निवेदन करने जा रहा है। अग्नि अष्टमूर्ति महादेव की अन्यतम मूर्ति है / कालिदास ने अपने शकुन्तला नाटक के मंगलाचरण में इन आठ रूपों को गिना रखा है। वे आठ महादेव के रूप ये हैं.-.-"जलं बतिस्तथा यष्टा सूर्याचन्द्रमसौ तथा। आकाशं वायुरवनी मूर्तयोऽष्टौ पिनाकिन: // " यह कितनी आश्चर्य की बात है महादेव के जिस रूप अग्नि ने कामदेव को भस्म कर दिया था, वही अग्नि कामदेव का वैरी होता हुआ भी आज कामदेव की आज्ञा पर चल रहा है, इस तरह यहाँ विषमालंकार ध्वनित हो रहा है। 'दासी' 'देशि' में ( सशयोरभेदात् ) छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। त्वद्ग्रोचरस्तं खल पञ्चबाणः करोति संताप्य तथा विनीतम् / स्वयं यथा स्वादिततप्तभूयः परं न संतापयिता स भूयः // 72 // अन्वयः-त्वद्गोचरः पञ्चबाणः तम् संताप्य तथा खलु विनीतम् करोति, यथा स्वयम् स्वादित-तप्तभूयः स भूयः परम् न संतापयिता / टीका-त्वम् गोचरः विषयो यस्य तथाभूतः ( ब० वी० ) त्वां लक्ष्यीकृत्येत्यर्थः पञ्च बाणा: शराः यस्य तथाभूतः (ब० वी० ) काम इत्यर्थः तम् अग्निम् संताप्य संतापं प्रापय्य तथा तेन प्रकारेण खलु निश्चितम् विनीतम् गृहीतशिक्षम् करोति विदधाति यथा येन प्रकारेण स्वयम् आत्मना स्वा दतः गृहीतस्वादः अनुभूत इति यावत् तप्तस्य भाव इति तप्तभूयम् तप्तत्वं तापमित्यर्थः ( कर्मधा० ) येन तथाभूतः भुक्तभोगीत्यर्थः ( ब० वी० ) सः अग्निः भूयः पुनः परम् अन्यम् न संतापयिता संतापयिष्यति / अग्निम् तापयित्वा कामः तस्मै तथा शिक्षाम् अददात् यथा भुक्तभोगी सन् स परान् न तापयेदिति भावः // 72 / / __व्याकरण-संताप्य सम् + /तप + णिच् + ल्यप् / विनीतम् वि + /नी+ क्त ( कर्मणि ) / तप्तभूयः तप्त + /भू + क्यप् ( 'भुवो भावे' 3 / 1 / 107 ) / संतापयिता सम् + /तप् + णिच् + ल्युट् / अनुवाद-"तुम्हें ( अनुराग का ) आलम्बन बनाये काम उस ( अग्नि ) को अच्छी तरह तपाकर ऐसी शिक्षा दे रहा है कि जिससे स्वयं संताप का भुक्तभोगी बना वह फिर दूसरे को न तपाने पाये" // 72 // टिप्पणी-विद्याधर यहाँ उत्प्रेक्षा कह रहे हैं। उनके विचारानुसार कवि
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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