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________________ अष्टमः सर्गः 319 पुरानी बूढ़ियों को छोड़ देना पुरुषों का स्वभाव ही होता है / आशाओं (दिशाओं) का हमारे शास्त्रों में शरीरी के रूप में उल्लेख है। तभी तो वे दिक्पालों की पत्नियाँ बनती हैं। विद्याधर 'अत्रासम्बन्धे सम्बन्धरूपातिशयोक्तिः' कह गये हैं किन्तु हमारे विचार से दो विभिन्न आशाओं-अभिलाषा और दिशाओं --- का श्लेषमुखेन यहाँ अभेदाध्यवसाय होने से भेदे अभेदातिशयोक्ति होनी चाहिए। मल्लिनाथ के अनुसार “एकस्य हृदयस्य आशाद्वयप्राप्ती एकत्रैव नियमनात् परिसंख्या" कहत हैं। परिसंख्या अलंकार वहाँ होता है जहाँ दोनों जगह स्थापित की जाती है 'दाराः' 'दाराः' में यमक है, जिसका अन्त्यानुप्रास के साथ एकवाचकानुप्रवेश संकर है। 'तुना' 'तनू' तथा 'पूर्वा' 'पूर्व' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। अनेन साधं तव यौवनेन कोटि परामच्छिदुरोऽध्यरोहत् / प्रेमापि तन्दि ! त्वयि वासवस्य गुणोऽपि चापे सुमनःशरस्य / / 61 // अन्वयः-त्वयि वासवस्य अच्छिदुरः प्रेमा अपि तव यौवनेन सार्धम् पराम् कोटिम् अध्यरोहत्, सुमनःशरस्य गुणः अपि चापे (पराम् कोटिम् अध्यारोहत् ) / टीक! -हेतन्वि कृशाङ्गि ! त्वयि त्वां प्रति वासवस्य इन्द्रस्य न छिदुरः ( नञ् तत्पु० ) अविच्छिन्नः अतिदृढ इति यावत् प्रेमा अनुरागः अपि तव ते यौवनेन तारुण्येन सह सार्धम् पराम कोटिम उत्कर्षम् ( 'अत्युत्कर्षाश्रयः कोटयः' इत्यमरः ) पराकाष्ठामित्यर्थ अध्यारोहत् प्राप्तवान, सुमनांसि पुष्पाणि शराः बाणाः यस्य तथाभूतस्य / ब० वी० ) कालस्येत्यर्य: गुणः प्रत्यञ्चा अपि चापे धनुषि परां द्वितीयां कोटिम् अटनिम् प्राप्तमित्यर्थः अध्यारोहदिति पूर्वतोऽनुवर्तते / यदैव यौवनं प्राप्तायाम् त्वयि इन्द्रस्यानुरागः परां कोटिमगमत्, तदेव कामचा. पस्य प्रत्यञ्चापि परां कोटिं गता, त्वय्यनुरक्तः इन्द्रः काम-पीडितो भवदिति भावः / 61 // __व्याकरण-यौवनेन इसके लिए पीछे श्लोक 59 देखिये / छिदुराम छिद्यते ( कर्मकर्तरि प्रयोग ) इति /छिद् + कुरच् / वासवस्य वसूनि ( धनानि ) सन्त्यस्येति वसु + अण् ( मतुबथं ) / __ अनुवाद-“हे कृशाङ्गी ! तुम्हारे यौवन के साथ 2 तुम्हारे प्रति इन्द्र का दृढ़ प्रेम भी परा कोटि ( पराकाष्ठा ) को पहुंचा, तो कामदेव के धनुष को डोरी भी परा कोटि ( आखरी सिरे ) पर पहुंची' // 61 / /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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