________________ नैषधीयचरिते तस्य नलस्य धर्यस्य धीरतायाः निर्विकारताया इत्यर्थः पूजाम् सपर्याम् प्रति उद्दिश्य पर्यवस्यन् परिणमन् पूजायाम् उपयुज्यमान इति यावत् मोषः विफल: न अभूत् न जातः / स्वाङ्गसंसर्गेण रोमाञ्चिताङ्गी स्त्रियम् कटाक्षः पश्यन्तं नलं रागेणायम् तां पश्यतीति बुद्धया जातभ्रमः कामस्तस्मिन् तथा पुष्पबाणान् प्राहरत्, यथाऽसौ प्रदीप्तकामः तया संभोगमाचरेत् किन्तु संयतेन्द्रियस्य नलस्योपरि स्वपुष्पवाणानां न कमपि प्रभावं विलोक्य कामः तैरेव स्वबाण-पुष्पैः नलधयंस्य पूजामकरोन्नतु पुष्पाणि वैयर्थ्यमनयदिति भावः // 23 // व्याकरण-भ्रान्तेन /भ्रम् + क्तः ( कर्तरि ) / कान्तेन काम्यते इति कम् + क्तः ( कर्मणि ) ओघः वहतीति /वह + घन् (पृषोदरादित्वात् साधुः ) / पर्यवस्यन् परि + अव + /सो + शतृ / ___ अनुवाद-रोमाञ्चित गात्र वाली स्त्री की ओर उन ( नल ) के कटाक्षों से भ्रम में पड़े हुए कामदेव द्वारा ( उनपर ) फेंका हुआ पुष्प-रूप बाण-समूह उन (नल ) के धैर्य की पूजा का काम देता हुआ व्यर्थ नहीं हुआ // 23 // टिप्पणी नल ने पाप और टक्कर से बचने हेतु ही कटाक्षों से देखना शुरू किया था, लेकिन काम गलती से उनके कटाक्षों में स्त्री के प्रति अनुराग समझ बैठा और उन पर बाण-पुष्पों का प्रहार कर गया, किन्तु जितेन्द्रिय नल पर भला उसका क्या प्रभाव पड़ना था। यह देख कामदेव दंग रह गया। उसने अपने बाण-पुष्पों से नल के धैर्य की पूजा की / मल्लिनाथ के अनुसार 'अत्र नलधैर्यभङ्गाय प्रयुक्तकुसुमशरजालस्य न केवलं तद्भञ्जकत्वम्, प्रत्युत तत्पूजकत्वमापन्नमित्यनर्थोक्तिरूपो विषमालङ्कारः' अर्थात् काम ने बाण-पुष्प प्रयुक्त किये थे नल के धैर्य भंग करने के लिए, उल्टे वे उसकी पूजा करने लगे। शत्रुविनाश हेतु भेजे बाण शत्रु के ही प्रशंसक और पूजक बन गये—यह अनर्थ ही समझिए / विद्याधर यहाँ कायलिंग कह रहे हैं / 'भ्रान्तेन' 'कान्तेन' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास और अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। हित्वैव वत्मकमिह भ्रमन्त्याः स्पर्शः स्त्रियाः सुत्यज इत्यवेत्य / / चतुष्पथस्याभरणं बभूव लोकावलोकाय सतां स दीपः // 24 // अन्वयः-'एकम् वम हित्वा एव इह भ्रमन्त्याः स्त्रियाः स्पर्शः सुत्यजः' इति अवेत्य सताम् दीपः स लोकावलोकाय चतुष्पथस्य आमरणं बभूव /