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________________ अष्टमः सर्गः 285 करके भी दमयन्ती के माध्यम से फिर उनका वर्णन करने लगा है। इसे हम दमयन्ती की उक्ति भी मान सकते हैं कि भले ही लोग मुझे कुछ भी कहें लेकिन 'गुणाद्भुत' के स्तुति-गान से मैं नहीं अघाती, करती ही रहूंगी। विद्याधर यहाँ काव्यलिंग कह रहे हैं। हमारे विचार से पिछले श्लोक को यदि विशेष-परक माना जाय, तो इसे सामान्य-परक-रूप में लेकर इसके द्वारा विशेष का समर्थन होने से यहाँ अर्थान्तरन्यास बन सकता है। वाग्जन्मवैफल्य पर शल्यत्वारोप में रूपक है / शब्दालंकार वृत्त्यनुप्रास है। कंदपं एवेदमविन्दत त्वां पुण्येन मन्ये पुनरन्यजन्म / चण्डीशचण्डाक्षिहुताशकुण्डे जुहाव यन्मन्दिरमिन्द्रियाणाम् / / 33 // अन्वयः-कन्दर्पः एव पुण्येन त्वाम् एव इदम् पुनः अन्यजन्म अविन्दत ( इति ) मन्ये यत् ( सः ) चण्डी...कुण्डे इन्द्रियाणाम् मन्दिरम् जुहाव / टीका-कन्दर्पः कामः एव पुण्येन पूर्वजन्मकृत-सुकृतेन सुकृतस्य फलरूपेणेत्यर्थः त्वाम् त्वद्रूपम् एव इदम् दृश्यमानम् पुनः अन्यत् जन्म पुनर्जन्मेत्यर्थः अविन्दत प्राप्तवान् कामदेवः पुण्यवशात् अस्मिन् जन्मनि त्वद्रूपे पुनरवतीर्ण इत्यर्थः, यत् यस्मात् स कन्दर्पः चण्डी पार्वती तस्याः ईश: स्वामी महादेव इत्यर्थः तस्य यः चण्डाक्षिहुताशः ( उभयत्र ष० तत्पु० ) चण्डम् क्रूरम् अक्षि नेत्रम् एव हुताश: वह्निः ( उभयत्र कर्मधा० ) तस्य कुण्डे पिठरे, अग्नि-गर्ते, अग्न्यायतने इति यावत् (ष० तत्पु० ) इन्द्रियाणाम् करणानां चक्षुरादीनाम् मन्दिरम् गृहम्, इन्द्रियाश्रयम् शरीरमिति यावत् जुहाव हुतवन् पुण्यार्जनायव कामेन बुद्धिपूर्वकम् स्वशरीरम् अग्निकुण्डे हुतम्, फलस्वरूपञ्च त्वद्रपे जन्म प्राप्तमिति भावः // 33 // व्याकरण-कंवप: के कुत्सितः दर्पो यस्मात् तथामूतः (ब० बी० ) / अक्षि इसके लिए पीछे श्लोक . 27 पर देखिए / हुताशः अश्नातीति /अश ( भक्षणे ) + अच् ( कर्तरि ) अशः हुतस्य हव्यरूपेण प्रक्षिप्तस्य अशः (10 तत्पु० ) / इन्द्रियाणाम्-इन्दतीति इद् ( ऐश्वर्य ) + रन् ‘इन्द्रः = आत्मा तस्य लिङ्गम् करणेन कर्तुरनुमानात्, इति इन्द्र + घ, घ को इय ( 'इन्द्रिय मिन्द्र' 5 / 2 / 13 ) / अनुबाद-“कामदेव ही पुण्यफल-स्वरूप तुममें यह पुनर्जन्म प्राप्त कर बैठा है-ऐसा मैं मान रही हूँ, क्योंकि वह महादेव के प्रचण्ड नेत्ररूपी अग्नि के कुण्ड में अपने शरीर की आहुति दे चुका था" / / 33 //
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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