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________________ 256 नैषधीयचरिते तस्मिन्नलोऽसाविति सान्वरज्यत् क्षणं क्षणं क्वेह स इत्युदास्त / पुनः स्म तस्यां वलतेऽस्य चित्तं दूत्यादनेनाथ पुनर्व्यवति // 5 // अन्वयः सा तस्मिन् 'असौ नलः' इति अन्वरज्यत्; ‘स इह क्व ?' इति क्षणम् क्षणम् उदास्त / अस्य चित्तम् अस्याम् पुनः वलते स्म; अथ अनेन दूत्यात् पुनः न्यवति / ___टीका-सा दमयन्ती तस्मिन् आगन्तुके पुरुषे 'असो पुरुषः नलः' अस्तीति शेषः इति कारणात् विचार्य वा अन्वरज्यत अनुरक्ताऽभवत् / अनन्तरं च 'स नलः इह अस्मिन् भट: सुरक्षिते हर्ये क्व कुतः' संभवतीति शेषः इति कारणात् क्षणं क्षणं प्रतिक्षणम् उदास्त उदाता अभवत् / अस्य नलस्य चित्तम् मनः पुनः मुहुः तस्याम् दमयन्त्याम् वलते स्म चलति स्म तामनु चञ्चलं भवति स्मेत्यर्थः, अथ अनन्तरम् अनेन नलस्य चित्तेन दूत्यात् दूतत्वात् अहम् इन्द्रस्य दूतोऽस्मीति विचार्येत्यर्थः पुनः मुहुः न्यति दमयन्तीसकाशात् निवृत्तम् // 5 // व्याकरण-क्व किम् को सप्तम्यर्थ में क्व आदेश ( 'क्वाति' 7 / 2 / 105) / क्षणम् क्षणम् वीप्सा में द्वित्व / उदास्त-उत् + /आस् + लङ् ( आत्मने० ) / दूत्यात् दूतस्य भावः कर्म वा इति दूत + यत् ( वैदिक प्रयोग ) / न्यति नि + Vवृत् + लुङ् ( भाववाच्य ) / ___अनुवाद-वह ( दमयन्ती ) 'ये नल हैं। यह विचारकर उनमें अनुरक्त हो उठी, ( बाद को ) वे यहाँ कहाँ ?' यह सोचकर पल पल में उदास हो जाया करती थी। इन ( नल ) का चित्त बार-बार उस ( दमयन्ती ) की ओर चला जाता था, (किन्तु ) बाद को दूत होने के कारण फिर वापस आ जाता था // 5 // टिप्पणी-यहाँ कवि एक दूसरे का साक्षात्कार होने पर नायक और नायिका में अन्तर्भावों का संघर्ष बता रहा है। दमयन्ती ने नल के सम्बन्ध में हंस के मुख से जैसे सुना था और चित्रों में भी जैसा देखा था, उसी तरह आगन्तुक को पाकर 'यह नल हैं' यह जान हर्षोत्फुल्ल हो गई, लेकिन क्षणभर बाद कहाँ निषध-देश और कहाँ विदर्भदेश में सैनिकरक्षित कन्यान्तःपुर, यहाँ नल कैसे हो सकते हैं-यह विचार आते ही मन में विषाद छा गया। इस तरह यहाँ हर्ष और विषाद, इन दो भावों की सन्धि होने से भाव-सन्धि अलंकार है।
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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