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________________ 15 सप्तमः सर्गः 215 टीका-मत्स्यः मीनः केतुः ध्वजः ( कर्मधा० ) यस्य तथाभूतः (ब० वी०) काम इत्यर्थः पितुः स्वजनकस्य कृष्णस्येत्यर्थः सुदर्शनेन सु = शोभनं दर्शनं यस्य तथाभूतेन ( प्रादि ब० वी० ) सुलभदर्शनेनेति यावत् अथ च एतदाख्येन चक्रेण अस्त्रविशेषेण युधि युद्धे विश्वम् जगत् जितम् पराभूतम् वीक्ष्य विलोक्य दुर्लभ दर्शनं यस्य तथाभूतेन वस्त्रेण अ वृतत्वाद्रष्टुमशक्येनेत्ययः अमुना एतेन नितम्ब: कटिपश्चाद्भाग एव नितम्बमयम् नितम्बात्मकम् इत्यर्थः तेन चक्रण जगत् लोकम् जिगीषति जेतुमिच्छति किम् ? पित्रा सुदर्शनेन = सर्वप्रत्यक्षेण सुदर्शन-चक्रण जगत जितम् तत्पुत्र: कामस्तु असुदर्शनेन सर्वाप्रत्यक्षेण नितम्बात्मक-चक्रेण जगज्जिगीषतीति भावः // 89 // व्याकरण-जगत् गच्छतीति /गम + युधि/युध् + क्विप् (भावे) सप्तमी / नितम्बमयेन नितम्ब + मयट् ( स्वरूपार्थे ) / दुर्लभ दुर् + /लभ + खल / जिगीषति /जि + सन् + लट् / अनुवाद-कामदेव पिता ( कृष्ण ) द्वारा सर्वप्रत्यक्ष सुदर्शन नामक चक्र द्वारा जगत् को पराजित किया हुआ देखकर दुर्लभ दर्शनवाले इस नितम्बरूप चक्र द्वारा जगत् जीतना चाह रहा है क्या ? // 89 // टिप्पणी-अब दो श्लोकों में कवि नितम्ब का वर्णन करता है। सर्ग 1 श्लोक 32 के अनुसार जब महादेव ने काम को भस्म कर दिया था, तो उसकी पत्नी उनके आगे बहुत रोई-पीटी। निदान दयार्द्र हो महादेव ने उसे आश्वासन दे दिया कि रो मत, तेरा पति भगवान् कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में फिर जन्म ले लेगा। इस तरह कृष्ण काम के पिता हुए। पुत्र देखो तो पिता से बात आगे बढ़ गया / पिता का चक्र सुदर्शन था, जिसे सभी देख सकते थे, लेकिन पुत्र ने जगत्-विजय हेतु ऐसा चक्र अपनाया जो देखने में तो नहीं आ रहा है, परन्तु जगत् का सफाया कर रहा है। उसका ऐसा चक्र है दमयन्ती का नितम्ब जो वस्त्रावृत होने से देखने में नहीं आता है / इस तरह जगद्-विजय में पुत्र पिता से आगे निकल गया है। भाव यह है कि दमयन्ती का नितम्ब देखकर काम उद्दीप्त हो उठता है। यहाँ कवि की यह कल्पना उत्प्रेक्षा बना रही है. जिसका वाचक किम् शब्द है। उसके मूल में नितम्ब पर चक्रत्व के आरोप से बनने वाला रूपक काम कर रहा है। पिता की अपेक्षा पुत्र में अधिकता बताने में
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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