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________________ 184 नैषधीयचरिते चन्द्रश्च अम्बुज कमलं चेति ( द्वन्द्व ) यदा यस्मिन् समये स्वां निजां लक्ष्मी शोभाम् ( कर्मधा० ) अस्याः दमयन्त्याः आस्ये मखे निक्षिपतः स्थापयतः तदा तस्मिन् समये तयोः चन्द्राम्बुजयोः भोः न भवतीति शेषः / सूर्यात् भीतश्चन्द्रः, चन्द्रात् भीतञ्च अम्बुजम् स्व-स्वशोभां दमयन्त्याः मुखे निक्षिपतः स्वयं च तद्द्वयं शोभारहितं भवति अर्थात् चन्द्रस्य शोभा सूर्याभिभवात् दिवा न तिष्ठति कमलस्य च शोभापि सूर्यप्रकाशाभावात् रात्रौ न तिष्ठति / इदम दमयन्त्या मुखम् तु एकस्य चन्द्राम्बुजयोरेकतरस्य श्रिया शोभया (10 तत्पु० ) कदा कस्मिन् समये न कान्तं शोभापूर्णम् भवति ? अपि तु किं वा दिवा किं वा नक्तंसर्वदैव कान्तमिति काकुः // 55 // व्याकरण--अम्बुजम् अम्बुनि जायते इति अम्बु + Vजन + ड / आस्ये इसके सम्बन्ध में पीछे श्लोक 21 देखिए / श्री: इसके लिए भी पीछे श्लोक 38 देखिए / कान्त कम् + क्त ( कर्मणि ) / अनुवाद--दिन को और रात को (क्रमशः ) सूर्य और चन्द्रमा से भय खाये हुए चन्द्रमा और कमल जब अपनी-अपनी लक्ष्मी शोभा-इस ( दमयन्ती) के मुख में रख देते हैं, तब उन दोनों में शोभा नहीं रहती, किन्तु यह ( दमयन्ती का मुख ) उन दोनों में से किसी एक की शोभा द्वारा कब सुन्दर नहीं रहता है ? टिप्पणी-हम देखते हैं कि चन्द्रमा की शोभा रात में ही रहती है, दिन में नहीं। इसी प्रकार कमल की शोभा भी दिन में ही रहती है, रात में नहीं। किन्तु दमयन्ती का मख दिन और रात शोभा रखे ही रहता ह। निक्षिपतः शब्द से यह ध्वनि निकलती है कि दमयन्ती का मुख चन्द्र द्वारा दिन में उसकी धरोहर रखी शोभा को लौटा देता है, क्योंकि दिन में वह सूर्य से डरा रहता है कि कहीं छीन न ले / धरोहर वस्तु तो लौटा देने वाली होती है; हमेशा के लिए रखने की नहीं। यही बात कमल के सम्बन्ध में भी है। वह भी अपनी शोभा रात को दमयन्ती के मुख के हाथों धरोहर रख देता है, क्योंकि रात में वह चन्द्रमा से डरता है। दिन में फिर वापस ले लेता है। भाव यह निकला कि दमयन्ती का मुख दिन में चन्द्रमा की दीप्ति से और रात को कमल की दीप्ति से चमकता ही रहता है। यहाँ श्री (शोभा) पर श्री ( धन ) का, मुख पर धनी और चन्द्र तथा कमल पर धन धरोहर रखने वाले व्यक्ति का व्यवहार
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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