SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 182 नषधीयचरिते भागः अंशः भाल: ललाटम् भ्रवौ एव लक्ष्म कलङ्कम् ( कर्मधा० ) दधत् वहत् अर्थम् खण्डम इन्द्रः अर्घचन्द्रखण्डः अस्तीति शेषः / दमयन्त्याः समनं मुखं पूर्णमासी चन्द्रतोऽधिकसुन्दरम् भालम् अर्धचन्द्रखण्डतुल्यम् , ध्रुवौ च कलङ्क: तुल्यमिति भावः / / 52 // व्याकरण-महिमा महतो भाव इति महत् + इमनिच् / लक्ष्मन् लक्ष्यतेऽनेनेति लक्ष् + मनिन् / दधत् Vधा + शतृ / तृतीयः त्रयाणां पूरण इति त्रि + तीय, सम्प्रसारण / अनुवाद-- पूर्णमासी के ( पूर्ण ) चन्द्र को जीतकर इस ( दमयन्ती ) के संपूर्ण मुख की महिमा नहीं बढ़े क्या ? जिसका तृतीय भाग --- मस्तक भौंह-रूपी कलङ्क धारण करता हुआ सचमुच चन्द्रमा का अर्ध खण्ड है / / 53 // टिप्पणी- दमयन्ती के समग्र मुख की तुलना करें, तो वह सम्पूर्ण कलाओं से युक्त पूर्णमासी के चन्द्र को मात किये हुए है और आधा मुख अर्थात् भाल तक का हिस्सा अर्धचन्द्र है, जिसमें भौंहे कलंक का काम कर रही हैं / मुख को पूर्ण चन्द्र से उत्कृष्ठ बताने में व्यतिरेक, एवं भाल पर अर्धचन्द्रत्वारोप में रूपक है / मल्लिनाथ खलु शब्द को संभावना के अर्थ में लेकर उत्प्रेक्षा और साथ ही रूपक भी मान रहे हैं, किन्तु हमारे विचार से “भाल मानो अर्धचन्द्र हो' ऐसी कल्पना करने से रूपक के लिए स्थान नहीं रहता है। विद्याधर अतिशयोक्ति कह रहे हैं, जो हमारी समझ में नहीं आता / 'पूर्ण' 'पूर्ण' 'हिमा' 'हिमां' में छेक, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है / व्यधत्त धाता बदनाब्ज'मस्याः सम्राजमम्भोजकुलेऽखिलेऽपि / सरोजराजौ सृजतोऽदसीयां नेत्राभिधेयावत एव सेवाम् // 54 // अन्वयः-धाता अखिले अपि अम्भोजकुले अस्याः वदनाब्जम् सम्राजम् व्यधत्त, अतएव नेत्राभिधेयौ सरोजराजो अदसीयाम सेवाम् सृजतः / टीका-धाता ब्रह्मा अखिले समग्रे अपि अम्भोजानाम् कमलानाम् कुले समूहे ( 10 तत्पु. ) अस्याः दमयन्त्याः वदनम् मुखम् एव अब्जम् अम्भोजम् ( कर्मधा० ) सम्राजम् चक्रवर्तिनम् व्यधत्त कृतवान्, अतएव नेत्रम् नयनम् अभिधेयम् नाम ( कर्मधा० ) ययोस्तथाभूतौ ( व० वी० ) नैत्रसंज्ञको इत्यर्थः सरोजा. 1. मुखपद्म /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy