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________________ सप्तमः सर्गः 149 कामचाप उतना सशक्त नहीं था जितना कि दमयन्ती के भ्रूरूप में इस समय है, अर्थात् उसकी भौंहें बड़ी कामोद्दीपक हैं / शब्दालंकारों में 'चापे' 'चापे' में यमक 'भव' 'भावः' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। घनसारभावः-घनसार शब्द में श्लेष रखकर इसके कर्पूर-रूप अर्थ की ओर भी कवि का संकेत मालूम पड़ता है। कपूर भी अपनी 'अप्लोष-दशा' की अपेक्षा 'प्लोष दशा' में अधिक वीर्यशाली अर्थात अधिक सुगन्धि-उत्पन्न करने की क्षमता वाला हुआ करता है। प्रकरण में यह कर्पूर-रूप अर्थ असंगत होने से उसका प्रकृत के साथ उपमानोपमेयभाव सम्बन्ध बनाकर इसे हम उपमाध्वनि ही कहेंगे अर्थात जिस प्रकार कपूर अदग्धावस्था की अपेक्षा दग्धावस्था में अधिक सक्षम होता है, वैसे ही कामधनुष की बात भी है / स्मारं धनुर्यद्विधुनोज्झितास्या यास्येन भूतेन च लक्ष्मलेखा। एतद्धृवी जन्म तदाप युग्मं लीलाचलत्वोचितबालभावम् // 26 // अन्वयः--यत् स्मारम् धनुः, अस्याः आस्येन भूतेन विधुना उज्झिता या लक्ष्मलेखा च तत् युग्मम् एतद्-भ्रुवो लीला""भावम् जन्म आप। टीका-यत् स्मारम् स्मर-सम्बन्धि धनुः चापः, अस्याः दमयन्त्याः आस्येन मुखेन भूतेन जातेन विधुना चन्द्रेण आस्ये परिणतेन चन्द्रणेत्यर्थः उज्झिता त्यक्ता या लक्ष्मण: कलङ्कस्य लेखा रेखा च चन्द्रगतकालिम्नो राजिरित्यर्थः तत् युग्मम् द्वयम्-दाहे श्यामीभवत्केसरशेषं स्मरधनुः, चन्द्रीया कलङ्कात्मक श्यामरेखा. चेति यावत् एतस्याः दमयन्त्याः भ्रवौ लीला विलासश्च चलत्वं चाञ्चल्यञ्चेति लीलाचलत्वे ( द्वन्द्व ) तयोः उचितः योग्यः (10 तत्पु०) बालभावः (कर्मधा०) वालानां रोम्णाम् भाव: सत्ता बालत्वं वा यस्मिन् तथाभूतम् (ब० वी० ) जन्म उत्पत्तिम् आप प्राप ! दममन्त्याः सविलासं चञ्चलं च भ्रूयुगलम् गृहीतुं जन्मान्तरं दग्धकामधनुः चन्द्रलाञ्छनं चेति द्वयमिति भावः / / 26 // व्याकरण- स्मारम् स्मरस्येदमिति स्मर + अण् / आस्येन इसके लिए पीछे श्लोक 21 देखिए / युग्मम् / युज् + मक् ज को ग / जन्म / जन् + मनिन् / अनुवाद-(एक ) जो कामदेव का ( दग्ध ) धनुष है और ( दूसरी) इस ( दमयन्ती) का मुख बने हुए चन्द्र द्वारा छोड़ी हुई जो कलंक-रेखा है, वे दोनों इस ( दमयन्ती ) के दो भौहों के रूप में जन्म ले बैठे हैं, जिसमें विलास और चञ्चलता के योग्य रोम विद्यमान है // 26 / /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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