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________________ 134 नैषधीयचरिते हो / जैसा हम पीछे सर्ग 6 श्लोक 72 में स्पष्ट कर चुके हैं-जम्बू नदी सुवर्णपवंत सुमेरु से निकलती है, जिसकी मिट्टी स्वर्णिल ही है। इसीसे सोना भी निकलता है जिसके कारण सोना का नाम 'जाम्बूनद' पड़ा है। नारायण 'जम्बूनद्याः = जम्बूफलरसजातनद्याः' अर्थ करते हैं, जो हमारी समझ में नहीं आता है / जामुन के रस की नदी हमने कहीं नहीं सुनी है, दूसरे दमयन्ती की देहकान्ति जामुनी रंग की नहीं, बल्कि स्वणिल रंग की थी। स्वर्णिल मिट्टी शरीर पर लग जाने से मानो उसके शरीर के जितने भी जोड़ के स्थान--कन्धे, कोहनी, घुटने टखने हैं, वे सब बराबर अथवा भरे हुए हैं, ऊंचे-नीचे नहीं हैं जैसे दुर्बलों के देखे जाते हैं / सन्धि स्थानों से भिन्न स्थान जैसे कुच अथवा कमर का ऊँचा नीचापन तो स्वाभाविक ही था / 'हारिद्रनिभप्रभा' में उपमा है / जम्बू नदी की मिट्टी में से निकाली जाने की कल्पना में उत्प्रेक्षा है, जो 'किम्' शब्द द्वारा वाच्य हो रखी है, लेकिन विद्याधर यहाँ अनुमानालंकार मान रहे हैं। 'जम्बा' 'जम्बू' में छेक, 'प्यङ्ग' 'सङ्ग' में पदान्तगत अन्त्यानुप्रास, अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है। सत्येव साम्ये सदशादशेषाद्गुणान्तरेणोच्चकृषे यदङ्गैः। अस्यास्ततः स्यात्तुलनापि नाम वस्तु त्वमीषामुपमापमानः // 14 // अन्वयः-यत् अङ्गः साम्ये सति एव सदृशात् अशेषात् गुणान्तरेण उच्चकृष, ततः अस्याः ( अङ्गः ) तुलना अपि स्यात् नाम, तु अमीषाम् वस्तु उपमा अपमानः / ___टीका-यत् यस्मात् अङ्गैः दमयन्त्याः अवयवैः मुख-नयनादिभिः (कर्तृभिः) यत्किञ्चिद्गुणेन चन्द्रादिना साम्ये सादृश्ये सति वर्तमाने एव अपि सदृशात् समानात् अशेषात् चन्द्रादिरूपानिखिलवस्तुजातात् निखिलवस्तुजातापेक्षयेत्यर्थः / अन्यो गुणः विशेषधर्मः निष्कलंकत्वादिः तेन उच्चकृषे उत्कृष्ठीभूतम्, चन्द्रादिना सह दमयन्त्या अङ्गानां यत्किञ्चित् गुणेन वर्तुलाकारत्वाह्लादजनकत्वादिना यद्यपि साम्यं वर्तते, तथापि गुणान्तरेण निष्कलङ्कत्वादिना तानि सर्वमपि सदृशं चन्द्रादिकम् अतिशेरते एवेति तानि चन्द्राद्यपेक्षयोत्कृष्टानि सन्तीति भावः, ततः तस्मात् अस्याः दमयन्त्याः अङ्गरिति शेषः चन्द्रादीनां तुलना उपमा स्यात् भवेत् नामेति कोमलामन्त्रणे / चन्द्रादीनि दमयन्त्याः अङ्गानां सदृशानि सन्तीत्युपमया अपि भाज्यम् अङ्गानामधिकगुणत्वात्, अधिकगुणस्यैवचोपमानत्वनियमात्, तु किन्तु
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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