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________________ 122 नैषधीयचरिने मित्यर्थः यथा येन प्रकारेण औचितो औचित्यम् तथा स्मरेण कामेन सह अद्वैतम् ऐक्यम् ( तृ० तत्पु० ) तस्य मुदम् अन्वभवदित्यनुवर्ततो दमयन्त्याः शरीरगतरोमानमात्रस्य दर्शनेनैव यदा जीवस्य ब्रह्म कतानुभवानन्दमिवानन्दं नलोऽन्वभबत्, तर्हि तस्याः सर्वस्यापि शरीरस्य दर्शने तस्य ततोऽप्यधिकः कामैकतानुभवानन्दो भवेदिति समुचितमेवेति भावः // 3 // व्याकरण - अद्वयम् द्वौ अवयवौ अत्रेति द्वि + तयप्, तयप् को विकल से अयच् / न द्वयम् इत्यद्वयम् ( नन तत्पु० ) ब्रह्मन् वृंहति ( व्याप्नोति ) इति Vवृह + मनिन्, ऋको र / इत्थम् इदम् + थम् / औचिती उचितस्य भाव इति उचित + ष्यन् + ङीप , यलोपः / अद्वैतम् द्वयोः भावः इति द्वि + तल + टाप् = द्विता, द्वितैवेति द्विता + अण् ( स्वार्थे ) / अनुवाद-वह ( नल ) पहले उस ( दमयन्ती ) के रोम का अग्रभागमात्र देखते ही ब्रह्म कात्म्यका आनन्द अनुभव कर बैठे। बाद को इस तरह उस ( दमयन्ती के शरीर ) को सारा ही देखने पर-जैसा कि उचित था-उन्हें मदनैकात्म्य का आनन्द हो गया // 3 // टिप्पणी-वृहदारण्यक उपनिषद् में पति-पत्नी के मिलन से जीव-ब्रह्म के मिलन की तुलना इस तरह की गई है-'तद् यधा प्रियया स्त्रिया संपरिष्वक्तो न बाह्य किञ्चन वेद नान्तरम् , एवमेवायं पुरुषः प्राज्ञेनात्मना संपरिष्वक्तो न बाह्य किञ्चन वेद नान्तरम्' / कवि ने इसी आधार पर उपमान होने के नाते पतिपत्नी मिलन के आनन्द को जीव-ब्रह्म के मिलन के आनन्दं से ऊँचा उठाया है, उसे बहुत ही उत्कृष्ट सिद्ध किया है। भाव यह निकला कि ब्रह्मानन्द तो नल को प्रिया के रोम मात्र देखने से ही मिल गया, लेकिन मदनानन्द तब मिला जब उन्होंने उसके अङ्ग-प्रत्यङ्ग पर दृष्टि डाली। प्रिया का समूचा शरीर देखकर वे मदनानन्द में निमग्न हो गये / मुक्ति का आनन्द उनके सामने तुच्छ था। दुष्यन्त ने भी तो शकुन्तला को देखने पर यही कहा था-'अहो लब्धं नेत्रनिर्वाणम्' / विद्याघर यहाँ विषम और उपमा कहते हैं। लेकिन मदनानन्द को अधिक बता देने से हमारे विचार से व्यतिरेक होना चाहिए। मल्लिनाथ के अनुसार पर्याय अलंकार है, क्योंकि एक ही नल में यहां क्रमशः पहले ब्रह्मानन्द बताया, तब मदनानन्द / 'मोदं' 'मुदं' में छेक अन्यत्र वृत्त्यनुप्रास है /
SR No.032785
Book TitleNaishadhiya Charitam 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandev Pant
PublisherMotilal Banarsidass
Publication Year1979
Total Pages590
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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