________________ अथ क्षेपकश्लोकानामकाराद्यनुक्रमणिका श्लोकाः एकचित्त कुरुसैन्यं केवलं न क्रमेण क्ररं गत्वान्तरा जलजभिदुरी तत्र मार तावकापर तावके हृदि देहिनेव द्विजपति पृष्ठाताः / श्लोकाः पृष्ठाङ्काः श्लोकाः 1434 धूमवस्कल 1434 यत्र मौक्तिक 1042 न स्वेदिन (टि.) 571 या पाशिनैवा 1168 | नास्माकमस्मा 458 राज्ञि भानु 993 पीततावक 1180 वामनादणु 1113 पुष्पाणि बाणा: (टि.)३९६ विहस्य हस्ते 1289 बाहुचक्र 1182 सन्तमद्वय 1434 भानुसूनु 1435 सीत्कृतान्य 1430 मण्डलं निषधेन्द्र 1120 सार तनख 1434 मां त्रिविक्रम 1435 स्वामिना च 1434 | मृत्युभीति 1423 हृत्पद्मसन 199 | यत्तव स्तव 1434 हेमनामक ... इति क्षेपकश्लोकानामकाराथनुक्रमणिका समाप्ता पृष्ठाङ्काः 1393 834. 1389 1435 817 1434 1157 1349 830 1398