________________ द्वाविंशः सर्गः। सन्तुष्ट होकर वशीभूत हुए इस चकोर-शिशुसे मूल (अपनी चन्द्रिका खिलानेके हेतुभूत इस चकोर-शिशुके नेत्रदय ) को मानो लेनेके लिए (अथवा-अपनी साधारण चन्द्रिका देकर उससे श्रेष्ठ (चकोर-शिशुके) नेत्रद्वयको लेनेसे साधारण चन्द्रिकारूप मूल धनको मानो बढ़ाने के लिए-लोकमें भी ऋणदाता ऋण लेनेवालेको धन देकर उससे अपने मूल धनको बढ़ाता है) इस चकोर शिशुको अपनी चन्द्रिका खिलाता है, और उसी ( मृगसम्बन्धी नेत्रदय ) को पाने के लिए मृगको अपने अङ्क (मध्यभाग, पक्षा०-क्रोड ) में करता है / ( पाठा०-विशाल नेत्रदयको (पानेका उपाय) पूछने के लिए......... ) / [ लोकमें भी कोई व्यक्ति किसीके बच्चेकी बहुमूल्य वस्तु लेने के लिए जिस प्रकार उस बच्चेको कोई मधुर वस्तु मिठाई आदि खिलाता है और उससे उसे वशीभूतकर उसकी बहुमूल्य वस्तुको ले लेता है, उसी प्रकार यह चन्द्रमा तुम्हारे मुखके समान तो है, परन्तु नेत्रामाव होनेसे उसे मी पाकर नेत्रके भो समान बनने के लिए चकोर शिशुको चन्द्रिका खिलाकर उसके बड़े-बड़े नेत्रद्वयको पाना चाहता है तथा मृगको अपनी गोद में रखकर उसके भी बड़े-बड़े नेत्रद्वयको अपनेमें संलग्न करना ( पाना ) चाहता है ] // 141 // लावण्येन तवास्यमेव बहुना तत्पात्रमात्रस्पृशा चन्द्रः प्रोब्छनलब्धताऽर्द्धमलिनेनारम्भि शेषेण तु | निर्माय द्वयमेतदप्सु विधिना पाणी खलु क्षालितौ तल्लेशैरधुनाऽपि नीरनिलयैरम्भोजमारभ्यते / / 142 // लावण्येनेति / हे प्रिये ! बहुना कचित्पात्रे संचितेनाखिलेन लावण्येन कृत्वा तवास्यमेवारम्भि निर्मितम् / चन्द्रस्तु पुनस्तस्यलावण्यस्याधारपात्रं स्पृशतीति स्पृक तेन लावण्यस्थापन पात्रमात्रलग्नेन, अत एवं प्रोन्छनेन पात्रनिघर्षणेन कृत्वा या लब्धतोपार्जित्वं तेनाध कियरखण्डं मलिनं यस्य तेन किंचन्मलिनेन शेषेण भवन्मुखनिर्माणावशिष्टेनांशेन कृत्वारम्भि निर्मितः, अत एव शबलमण्डलोऽयं शोभत इत्यर्थः। शेषेण तु निर्मित इति वा / विधिना एतत्त्वन्मुखमृगावलक्षणं यं निर्माय सृष्ट्वाऽप्सु पाणी घालितो खलु लावण्यलेपकृतजलक्षालनाविव / तस्मात्तस्य पालनरजोमिलित. लावण्यलेपस्य लेशैररुपैरंशैरेव कर्तृभिरधुनापि नीरनिलयैर्जलस्थायिभिः सद्धिरम्भोजमारभ्यते निर्मीयते; कमलनिर्माणे ब्रह्मणः कोऽपि प्रयासो नेत्यर्थः / कमलाबन्द्रोऽधिकः, तस्मादपि त्वन्मुखं लावण्यसाकल्येन निर्मितत्वादधिक्रमिति भावः / अम्भोजम्, जात्येकत्वम् // 142 // (हे प्रिये !) ब्रह्माने बहुत ( किसी पात्र में रख गये सम्पूर्ण) सौन्दर्यसे तुम्हारे मुखको सथा उस पत्रमें लगे हुए और पात्रको पोंछनेसे आधी मलिनतासे युक्त (पात्र लग्न ) शेष सौन्दर्यसे चन्द्रमाको बनाया और इन दोनों-तुम्हारे मुख तथा चन्द्रमाको बनाकर भव. श्यमेव पानीमें दोनों हाथोंको धोया, (हाथ धोनेसे) पानीमें गिरे हुए उसी ( सौन्दर्य)