________________ नैषधमहाकाव्यम् / कमल-सङ्कोचकारक तेजवाला चन्द्रमा विकसित कमलोंकी. पूजा (आदर ) की श्रीको भले नहीं पावे, किन्तु यह ( चन्द्रमा) अपने कलङ्कभूत हरिणके (कमलतुल्य) दोनों नेत्रों में ही उस ( विकसित कमलोंकी पूजा) की शोभाको पाता है, ऐसा मैं मानती हूं। [स्वभावतः कमलसङ्कोचक प्रवृत्ति होनेसे यद्यपि चन्द्रमा विकसित कमलशोमाको नहीं देखता, तथापि कलङ्क-मृगके विकसित कमलके समान नेत्रोंसे उक्त शोभाको देख ही लेता है ] // 93 // य एष जागर्ति शशः शशाङ्के बुधो विधत्ते क इवात्र चित्रम् ? / अन्तः किलैतत्पितुरम्बुराशेरासीत् तुरङ्गोऽपि 'मतङ्गजोऽपि / / 94 // य इति / य एष प्रत्यक्षदृश्यः शशः शशाङ्के जागर्ति स्फुरति, अन विषये क इव बुधश्चित्रमत्राश्चयं विधत्ते ? अपि तु न कोऽपि / किल यस्मादेतपितुरम्बुराशेरन्तमध्ये उच्चैःश्रवःसंज्ञकस्तुरङ्गोऽप्यासीत् ।ऐरावताख्यो मतङ्गजोऽप्यासीत् / यदीयपितुर्मध्ये. ऽश्वगजादिकं भवति, तदीय(पुत्र)मध्ये शशमात्रसंभवे किमाश्चर्यमित्यर्थः // 94 / / ____जो यह ( प्रत्यक्ष दृश्यमान ) शशक चन्द्रमामें स्फुरित होता है, इस विषयमें कौन विद्वान् आश्चर्य करते हैं ? ( पदार्थ-विशेषके मध्यमें जीव-विशेषके रहनेसे किसी विद्वान्को आश्चर्य नहीं होता ), क्योकि इस ( चन्द्रमा ) के पिता समुद्रके मध्यमें ( 'उच्चैःश्रवा' नामका) घोड़ा तथा ( 'ऐरावत' नामका ) हाथी भी था। [जिसके पिताके मध्यमें बड़े-बड़े घोड़ाहाथी-जैसे जीव रहते थे, उसके पुत्र ( चन्द्रमा) के मध्यमें शशक-जैसे छोटे जीवके रहनेमें किसी विद्वान्को कोई आश्चर्य होना उचित नहीं है ] // 94 // गौरे प्रिये भातितमां तमिस्रा ज्योत्स्नी च नीले दयिता यदस्मिन् / शोभाप्तिलोभादुभयोस्तयोर्वा सितासितां मूर्तिमयं बित्ति / / 65 // गौर इति / तमिन्ना तमोबहुलास्य दयिता रात्रिगौरे प्रिये चन्द्रे विषये भातितमाम् / तथा-ज्यौरस्त्री च चन्द्रिकायुक्ता धवलाऽस्य दयिता रात्रिीले प्रागेशे. ऽस्मिश्चन्द्रे नितरां शोभते, भिन्नवणे हि शोभते इत्यर्थः / तस्मातोस्तयोस्तमिस्रा. ज्योत्स्न्योरुभयोरपि विषये स्वस्य शोभाप्राप्तेर्लोभादभिलाषात्तयोरेव वा पत्न्योर्या शोभाप्राप्तिस्तदभिलाषावलश्यामलवत्संबन्धात्तमिस्त्राज्योत्स्न्योः शोभया भवित. व्यमिति / अयं चन्द्रः सितासितां धवलां श्यामलां च मूर्ति बिभर्ति / 'वा' इवार्थः / शोभाप्तिलोभादिवेत्यन्वयः। नीलभागे ज्योत्स्नी प्रियां धारयितुं धवले च तामसीमिति यथासंख्यम् // 95 // अन्धकार ( युक्त रात्रि ) रूपा प्रिया गौरवर्ण प्रियतम (चन्द्र ) में तथा चन्द्रिका (युक्त रात्रि ) रूपा प्रिया कृष्णवर्ण प्रियतम (चन्द्र ) में विशेषतः शोमती है, अत एव मानो यह चन्द्रमा उक्त दोनों की शोभाको पानेके लोमसे (प्रान्तभागमें ) श्वेत तथा ( कलङ्कमें ) कृष्णवर्णकी मूर्तिको ग्रहण करता है / / 95 //