SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 629
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 1326 नैषधमहाकाव्यम् / किसी स्थानपर अधिकार कर लेनेपर निर्बल व्यक्ति वहाँ स्थान नहीं पानेसे वहांसे बाहर निकल जाता है / इस दमयन्तीके एकमात्र आप ही हृदयमें निवास करते हैं, स्वाङ्गभूत स्तनोंको भी वहाँ ठहरनेका अवकाश नहीं है ] // 48 // / कुचौ दोषोज्झितावस्याः पीडितौ व्रणिती त्वया / कथं दर्शयतामास्यं बृहन्तावावृतौ ह्रिया ? // 46 / / 'अधिगत्य' इत्यादि श्लोकोक्तकुचवैमुख्योपालम्भस्योत्तरमाह-कुचाविति / बृहन्तौ महान्तौ अतिपीनौ इत्यर्थः, महाशयौ च, तथा दोषोज्झितौ दोषेण शिथिल. स्वादिना, उज्झिती वर्जितो, कठिनौ इत्यर्थः / अथ च दोषा रात्रौ, उज्झितौ वस्त्रमुक्ती, निरावरणी इत्यर्थः / अस्याः सख्याः, कुक्षौ स्तनद्वयम् , त्वया भवता, पीडितौ पाणिभ्यां मदिती, अहेतुक दत्तक्लेशी च, तथा व्रणितौ नखैः क्षतविक्षती. कृती, शस्त्राघातेन व्रणवन्ती कृतौ इति च / व्रणवच्छब्दात् 'तत्करोति-' इति ण्यन्तात कर्मणि क्तः, णाविष्ठवनावात् 'विन्मतोलुंक' इति मतुपो लोपः। अतः हिया लज्जया हेतुना, इवेति शेषः / आवृतौ आच्छन्नौ, वस्त्रेगेति शेषः / कथं केन प्रकारेण, आस्यं सुखम् , चुचुकमिति यावत् , आननञ्च / दर्शयताम् ? प्रकाशयताम् ? न कथमपीत्यर्थः / महान्तो जनाः परेण अहेतुकं दूषिता अपि लज्जया न मुखं प्रदर्शयः न्तीति भावः / अत्र भवान् स्वयमेव कृतापराधः इति निष्कर्षः / दृशेय॑न्तात् लोटि तामादेशः / / 49 // (अब नलोत्तः 'अधिगत्य.' ( 2026) आक्षेपका 'कला' उत्तर दे रही है-) दोषरहित ( पक्षा०-रात्रिमें वस्त्रावरणरहित ), बड़े आकारवाले (पक्षा०-प्रतिष्ठादिसम्पन्न होते से बड़े ) तुमसे ( रात्रिमे रतिकालमें ) हाथसे मर्दित ( पक्षा-पीडित ) तथा ( नख. क्षत, पक्षा०-शस्त्रादि) से व्रणयुक्त किये गये इस ( दमयन्ती ) के दोनों स्तन (दिनमें) लज्जासे ( युक्त होने के कारण वस्त्रसे) ढके ( पक्षा-मुख अपनेको छिपाये ) हुए इस ( दमयन्ती ) के स्तनमुख (चूचुक, पक्षाo-मुंह) को कैसे दिखलावें ? [ जिस प्रकार प्रतिष्ठित एवं अपराधरहित कोई बड़ा आदमी किसीसे पीडित एवं शस्त्रक्षत होकर लज्जासे अपना मुख छिपा लेता है और किसीको अपना मुख नहीं दिखलाता; उसी प्रकार रात्रिमें वस्त्ररहित, शैथिल्यादिदोष-रहित अर्थात् कठिन दमयन्तीके बड़े-बड़े स्तनोंको आपने हाथसे मर्दित एवं नखसे विक्षत कर दिया, मानो इसी कारण वे दिनमें लज्जावश वस्त्रसे आच्छादित हो अपना मुख नहीं दिखला रहे हैं, अतः इनका ऐसा करना उचित ही है। अथ च-आप यदि बाहर स्थित रहते तो ये स्तन अपना मुख आपको दिखलाते अर्थात् इनका अग्रभाग आपके नेत्रों के सामने होता, किन्तु आप तो दमयन्तीके हृदयमें रहते हैं और ये स्तन ऊपर मुख किये दमयन्तीके हृदय ( वक्षः स्थल ) से बाहर रहते हैं, अत एव ये अपना मुख आपको कैसे दिखला सकते हैं, क्योंकि दमयन्ती-हृदयस्थ आपका स्तनाग्रके
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy