________________ 1210 नैषधमहाकाव्यम् / दिखाकर 'मैंने इसे ही बाहरसे आया हुआ दूसरा आदमी समझकर 'यह कौन है ?' ऐसा तुमसे कह दिया था ऐसा कहकर 'अन्यचित्ततया सम्भ्रमजननेन च भावबन्धनं कुर्यात्' [ अन्यचित्त करके या सम्भ्रमोत्पादनकर भावबन्धन करना चाहिये' इस कामशास्त्रोक्त वचनके अनुसार उसके भावबन्धनको किया ] // 109 // तत्क्षणावहितभावभावितद्वादशात्मसितदीधितिस्थितिः / आत्मनोऽनभिमतक्षणोदयां भावलाभलघुतां नुनोद सः / / 110 // तदिति / सः नलः, तस्मिन् क्षणे आसन्नच्युतिसमये, अवहितभावेन अवहित. त्वेन, एकाग्रतया इति यावत् / भाविता ध्याता, द्वादशात्मसितदीधित्योः सूर्याचन्द्र मसोः, स्थितिः नभोदेशे अवस्थानक्रमः येन सः तादृशः सन् , तेन च विषयान्तरनिविष्टतया च्युतिनिरोध इति भावः / आत्मनः स्वस्य, अनभिमतक्षणे अनभिप्रेतकाले, उदयः प्रादुर्भावः यस्याः तादृशीम् , भावलाभस्य च्युतिसुखप्राप्तः, लघुताम् आशुभाविताम् , नुनोद निवारयामास / 'तत्काले हृदि सोमार्कधारणात् सिद्धिः' इति रतिरहस्ये / अत्र पुंस एव शक्त्याधिक्योक्त्या योषितो बहुशक्तिप्रयुक्तरसाभा. सशङ्काऽपि समूलकाषकषितेति द्रष्टव्यम् // 110 // उस ( सुरतके ) समयमें सावधान मनसे सूर्य तथा चन्द्रमाकी नभोमण्डलमें स्थितिका ध्यान किये ( अथवा-....."सूर्य-चन्द्रसंज्ञक 'ईडापिगला' नाडियों में स्थित वायुको रोके) हुए उस ( नल ) ने अपने अभिलषित सुरतकालीन भावोदय (बीज-स्खलन ) को रोका। [ पहले दमयन्तीका स्खलन रोकने के बाद जब अपना स्खलन उससे पहले होने लगा तो नलने सूर्य-चन्द्रकी आकाश-स्थितिका एकाग्रमनसे ध्यान करनेमें मनको दूसरी ओर लगाकर 'अन्यचित्ततया संभ्रमजननेन च भावबन्धं कुर्यात्' इस कामशास्त्रोक्त वचनके अनुसार अपने बीजस्खलनको रोका / अथवा-सूर्य-चन्द्रसंशक ईडा तथा पिंगलानामक क्रमशः दहने तथा बायें नाडियोंमें स्थित वायुको रोककर 'दक्षिणनासामुद्रणे पुरुषस्य, वामनासिकामुद्रणे योषितो विन्दुस्तंभो भवति' ( दाहनी नाक बन्द करनेपर अर्थात् 'ईडा' संज्ञक नाडीमें स्थित वायुको रोकनेपर पुरुषका और बांयी नाक बन्द करनेपर पिंगलासंशक नाडीमें स्थित वायुको रोकनेपर स्त्रीका विन्दुस्तंभ ( स्खलननिरोध ) होता है।) इस कामशास्त्रोक्त वचनके अनुसार क्रमशः अपने तथा दमयन्तीके भी स्खलनको नलने रोका ] // 110 / / स्वेन भावभजने स तु प्रियां बाहुमूलकुचनाभिचुम्बनैः / निर्ममे रतरहः समापनाशर्मसारसमसंविभागिनीम् // 111 / / स्वेनेति / तु पुनः, सः नलः, भावभजने च्युतिसुखप्राप्तिविषये, बाहुमूलयोः कक्षदेशयोः, कुचयोः स्तनयोः, नाभौ नाभिदेशे च, चुम्बनैः पुनरुद्दीपनार्थ चुम्बनरूपैः 1. 'स्वां प्रियामभि-' इति 'प्रकाश' सम्मतं पाठान्तरम् / 2. 'भावजनने' इति पाठान्तरम् /