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________________ नेषधमहाकाव्यम् / इग्भिः दृष्टिभिः एव, चामरैः व्यजनैः, सा स्त्रीणां राट् स्त्रीराट स्त्रीणां राज्ञी, स्त्रीषु श्रेष्ठेत्यर्थः स्यात् भवेत् , 'सत्सूद्विष-' इत्यादिना विप / राजचिह्नत्वात् चामराणामिति भावः, यया स्त्रिया अघानि अभिहन्तीति अघाभिघाती पापविनाशी, ताच्छील्ये णिनिः, 'हो हन्तः-' इति कुत्वं 'हनस्तोऽचिण्णलोः' इति नकारस्य तकारः / तस्मिन् यमुनागङ्गयोः ओघयोगे प्रवाहसंयोगसमीपे, गङ्गायमुनासङ्गमे प्रयागादी इत्यर्थः, सामीप्ये अव्ययीभावः, 'तृतीयासप्तम्योर्बहलम्' इति विकल्पादम्भावाभावः / मघा भिर्नक्षत्रेण युक्ता पौर्णमासी माघी 'नक्षत्रेण युक्तः कालः' इत्यण / सा माघी अस्मिन् इति माघः / 'साऽस्मिन् पौर्णमासीति' इति संज्ञायामण्-प्रत्ययः / तं माघ मावमासं व्याप्य, अत्यन्तसंयोगे द्वितीया। सस्ने स्नातम् स्नाते वे लिट् / यया प्रयागे स्नातं सैव नलेन अवलोक्यते, अन्यथा कथमीहङ्महालाभ इति भावः। अत्राप्याहुः'सितासितेषु यैः स्नातं माघमासे युधिष्ठिर ! / न तेषां पुनरावृत्तिः कल्पकोटिशतैरपि // ' इति मन्महे विवेचयामि, वाक्यद्वयार्थः कर्मपदम् // 89 // मार्गमें जाते हुए, पुरुषश्रेष्ठ तथा रथपर सवार इस नलको वे ही स्त्रियां देखती हैं, ज्येष्ठ मासकी पूर्णिमाके श्रेष्ठ उत्सव ( अथवा-श्रेष्ठ ज्येष्ठमासकी पूर्णिमाके उत्सव ) में जिनके नेत्रों ने पूर्व जन्ममें ( या-पहले ) मार्गमें जाते हुए रथारूढ विष्णु भगवान्को देखा ( या-बार-बार देखा, या पहले ( अर्थात् सर्वप्रथम देखा ) है / अथवा-मार्गमें जाते हुए इस नलको वे ही (स्त्रियां ) देखती हैं, जिनके नेत्रोंने..... ) / तथा पतनशील कृष्णमिश्रित श्वेत वर्णवाले इनकी दृष्टिरूपी चामरोंसे वही स्त्री रानी (या-वही स्त्रियों में रानी) है, जिसने पापको सर्वथा नष्ट करनेवाले यमुना तथा गङ्गाके प्रवाहके सङ्गम ( तीर्थराज प्रयागमें गङ्गा-यमुनासरस्वतीके सम्मिलन स्थान ) में माघ मास तक स्नान किया है, ऐसा हमलोग मानती हैं, ( ऐसा 'नलको देखनेवाली स्त्रियोंने कहा' इस क्रियापूरक वाक्यका अध्याहार अग्रिम श्लोक (15/92) से करना चाहिये ) / [ महाज्यैष्ठी महोत्सवमें रथपर विराजमान विष्णु भगवान्को पहले जन्ममें देखनेवाली स्त्रियां ही उस पुण्यातिशयसे मार्गमें जाते हुए इस नलको देख सकती हैं, अतः हमलोग मार्गमें जाते हुए इस नलको देख रही हैं, यह अपना बड़ा पुण्यातिशय मानना चाहिये, उड़ीसामें लोग ज्येष्ठ मासकी पूर्णिमा तिथिको इन्द्र-नीलगिरि. निवासी पुरुषोत्तम भगवान्का महोत्सव मनाते हैं, उसमें श्रीकृष्ण, बलभद्र आदि की प्रतिमा को विराजमानकर सात भूमिकावाले रथको अलग-अलग निकालते हैं, उनके दर्शन करनेसे महापुण्य प्राप्त होता है, ऐसा पौराणिक कहते हैं / तथा ये दमयन्तीको कृष्ण-श्वेत कटाक्षसे देखेंगे, अतएव वह स्त्रियोंमें रानी है तथा पूर्वजन्ममें पूरे माघमासमें तीर्थराज प्रयागके गङ्गायमुनाके प्रवाहके संगम (त्रिवेणी ) में स्नान किया है, अतएव उसे यह उत्तम वर प्राप्त हुआ है ] // 89 // वैदर्भीविपुलानुरागकलनासौभाग्यमत्राखिलक्षौणीचक्रशतक्रतौ निजगदे तवृत्तवृत्तक्रमैः /
SR No.032782
Book TitleNaishadh Mahakavyam Uttararddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1997
Total Pages922
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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