________________ नैषधमहाकाव्यम् / हुई दमयन्तीने किली ( पांच नलमें-से किसी एक ) में भी निश्चयको नहीं प्राप्त कर सकी (पांचों में से किसीको भी सत्य नल होनेका उस दमयन्तीने निश्चय नहीं किया ) / अनन्तर परितापसे आनन्दरहित इसका मुख सूर्य से पराभूत ( कान्तिहीन किये गये ) चन्द्रकी निन्दा करने लगा अर्थात् दमयन्तीका परितापयुक्त मुख दिनके चन्द्रसे भी अधिक निस्तेज हो गया // 54 // श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालङ्कारहीरः सुतं श्रीहीरः सुषुवे जितेन्द्रियचयं मामल्लदेवी च यम् / स्वादूत्पादभृति त्रयोदशतयाऽऽदेश्यस्तदीये महा. काव्ये चारुणि नैषधीयचरिते सर्गो निसर्गोज्ज्वलः / / 55 / / श्रीहर्षमित्यादि / स्वादूत्पादभृति मधुरार्थधारिणि / त्रयोदशतया आदेश्यः त्रयो दशत्वेन सङ्घययः / गतमन्यन् // 55 // इति मल्लिनाथविरचिते 'जीवातु' समाख्याने त्रयोदशः सर्गः समाप्तः // 13 // कवीश्वर-समूहने........किया, उसके रचित सुन्दर नैषधचरित नामक महाकाव्यमें ( सहृदयाह्लादक होनेसे ) स्वादुरसोत्पत्तिसे युक्त अर्थात् अत्यन्त मधुर अर्थवाला यह त्रयोदश सर्ग समाप्त हुआ ? शेषव्याख्या चतुर्थसर्गवत् जाननी चाहिये / 55 / / यह 'मणिप्रभा' टीकामें 'नैषधचरित'का त्रयोदश सर्ग समाप्त हुआ // 13 // चतुर्दशः सर्गः। अथाधिगन्तुं निषधेश्वरं सा प्रसादनामाद्रियतामराणाम् | यतः सुराणां सुरभिर्गुणान्तु सा वेधसाऽसृज्यत कामधेनुः // 1 // अथेति / अथ चिन्तानन्तरं, सा भैमी, निषधेश्वरं नलम्, अधिगन्तुं लब्धुम्, अमराणाम् इन्द्रादीनां, प्रसादनाम अभिमुखीकरणं, पूजादिना सन्तोषसम्पादनमित्यर्थः, आद्रियत अमोघसाधकत्वेन अवालम्बतेत्यर्थः / अमोघसाधकत्वमेव समर्थयते यतः पुरा वेधसा सुराणां कामानां धेनुः कामधेनुः कामदुघा, सुरभिः काचन गौः, असृज्यत, नृणान्तु सा सुरप्रसादनैव, कामधेनुः असृज्यत, या यस्य कामान् दुग्धे गौरगौना सैवास्य कामधेनुरिति भावः / अत्र अमरप्रसादनायाः कामधेनुत्वेन रूप. णाद्रपकालङ्कारः॥१॥ इस ( प्रकार विकल्प या चिन्ता करने ) के बाद उस ( दमयन्ती ) ने निषधराज ( नल ) को पानेके लिए देवोंके पूजनका आदर किया अर्थात् देवोंको षोडशोपचार पूजनसे