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________________ दशमः सर्गः। 567 तर्का रदा यद्वदनस्य ता वादेऽस्य शक्तिः क ? तथाऽन्यथा तैः / पत्रं क्व दातुं गुणशालिपूगम् ? व वादतः खण्डयितुं प्रभुत्वम् / / 83 // पुनर्दन्तानेव तर्कत्वेनापि उत्प्रेक्षते, तर्का इति / यद्वदनस्य सम्बन्धिनः रदाः दन्ताः, 'रद ना दशना दन्ता रदाः' इत्यमरः, तर्का उहाख्याः प्रमाणानुमापकज्ञानविशेषाः, तन्मयाः इत्यर्थः, ताः उत्प्रेक्ष्याः; अन्यत्र-तर्कवत् कर्कशा इत्यर्थः / तथाहि, अस्य वदनस्य, दन्तैस्तकेश्व, अन्यथा विना, वादे कथायामभिवदन. व्यापारे च, तथा तादृशी, शक्तिः क्व ? दन्तैस्तश्च विना वादः कत्त न शक्यते इत्यर्थः; एवं तर्केविना वादतः वादनिमित्तात् , पत्रं प्रतिवादिने स्वपक्षसमर्थकं पत्रम्, अथवा प्रतिवादिनः प्रतिज्ञापत्रं, दातुं, व शक्तिः ? दन्तैर्विना च अदतः भक्षयतः, पत्रं ताम्बूलीदलादिकं, दातुं खण्डयितुं, शक्तिः क्व वा? सामर्थ्य न भवतीत्यर्थः; द्यतेश्च तुमुन् , तर्केविना गुणशालिनां प्रतिभादिगुणवतां वावदूकानां, पूगं वृन्द, वादतो वादेन, खण्डयितुं भक्तुम्, अन्यत्र-वा इति छेदः, दन्तैर्विना अदतो भक्षयतः, 'पदादयः पृथक् शब्दाः' इति मतेन न विद्यन्ते दतो दन्ता यस्य इत्यदतः दन्तरहितस्य वा, गुणशालि रसाढयं, पूगं पूगीफलं, 'पूगः क्रमुकवृन्दयोः' इत्यमरः, खण्डयितुं शकलयितुं, प्रभुत्वं सामर्थ्य, क वा ? श्लेषध्वनितेयं दन्तानां तर्कपरिणतत्वेन उत्प्रेक्षेति सङ्करः // 83 // ___ जिस ( सरस्वती देवी ) के मुखके दांतोंको तर्क (न्याय शास्त्र ) समझना चाहिये, उन ( तर्को) के बिना इस ( मुख ) की बाद ( शास्त्रार्थ, पक्षा-बोलने या भाषण करने, अथवा-'व और द' इन दो अक्षरों के उच्चारण करने ) में वैसी अनिर्वचनीय शक्ति कहां अर्थात् कहां से है ? और वादनिमित्तसे ( प्रतिवादीके लिये ) पत्र देने अर्थात् उसके ऊपर पत्रालम्बन करने के लिये ( प्रतिवादीके मतको खण्डन करने के लिए), ( अथवा-खाते हुए पक्षा०-( दन्तर हित इस मुखका ) गुणों ( कषाय आदि गुणों ) से शोभमान पत्र (पानके पत्ते ) को खण्डन करने (चवाने) के लिए, अथवा-कषायादि गुणोंसे युक्त पूग ( सुपारी) को खण्डन करने के लिए शक्ति कहाँ है ? / अथवा-बाद (शास्त्रार्थ ) से गुणों ( विद्वत्ता आदि गुणों ) से शोभमान (विद्वानों ) के समूहको खण्डन करने के लिए शक्ति कहांसे हैं ?.) / [ न्याय शास्त्र के बिना शास्त्रार्थ करने तथा दांतोंके बिना बोलने या 'वा तथा द' इन दो अक्षरोंका उच्चारण स्थान क्रमशः दन्तोष्ठ एवं दन्त होनेसे दांतों के विना उक्त दोनों अक्षरोंको उच्चारण करने में मुखकी शक्ति नहीं हो सकती तथा बाद में प्रतिवादीके खण्डन करने या खाते हुए मुखकी कषाय ( कसैलापन ) आदि गुण युक्त पत्ते (पान के पत्ते ) का, अथवा-कषायादि गुणशाली सुपारीका खण्डन कर के, अथवाविद्वत्तादि गुणशालियों ( विद्वानों ) के समूहका बाद (शास्त्रार्थ ) से खण्डन करने में मुखकी शक्ति कहां हो सकती है। अथबा-बिना दांतवाले मुखकी उक्त गुणशाली पत्रके या सुपारोके खण्डन करनेकी शक्ति कहां हो सकती है ? अर्थात् नहीं हो सकती। कठोर
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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