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________________ नैषधमहाकाम्पम् / इस प्रन्थकर्ता होनेसे गौडोवींशकुलशस्तिभणिति अर्थात् गौर देशके राजाके वंशकी प्रशंसाको करनेवाले ( पक्षा०-उक्त 'गोडगेवशकुलप्रशस्तिभणिति नामवाले अन्य विशेष / पाठा०-गौडोबीशकुलप्रशस्तिभगिनी' अर्थात् गौड देशके राजाके कुलकी प्रशंसा। पक्षा०'गौडोवीशकुलप्रशस्ति' नामक ग्रन्थविशेष रूपी बहन ) का सहोदर.. ... ... ."यह सप्तम सर्ग समाप्त हुआ। ( शेष अर्थ पूर्ववत् जानें ) // 109 // यह 'मणिप्रभा' टीकामें 'नैषधचरित' का सप्तम सर्ग समाप्त हुभा / / 7 / / अष्टमः सर्गः अथाद्भुतेनास्तनिमेषमुद्रमुनिद्ररोमाणममुं युवानम् / एशा पपुस्ताः सुटशः समस्ताः सुना च भीमस्य महीमघोनः // 1 // अयेति / अथ मलप्रादुर्भावानन्तरमद्भुतेन दमयन्तीसाचारकारजन्यविस्मया वशेन अस्ता निमेषमुद्रा निमीलनबन्धो यस्य तं निर्निमेषमित्यर्थः। उन्निद्ररोमाणं रोमाणमिति च विस्मयानुभावोक्तिः / युवानममुं नलमन्यत्राद्भुतेन नलरूपसा. साकारविस्मयेन अस्तनिमेषमुद्राः उन्निद्ररोमाणो युवतय इति परिणामः कार्यः। ता अमी सभासदः समस्ताः सुरशः खियः हशा पपुरतितृष्णया परित्यर्थः / तथा महीमघोनो भूदेवेन्द्रस्य भीमस्य सुता भैमी च पूर्वोत्कविस्मयानुभववती युवतिरचेति भावः / तं हशा पपाविस्यर्थः / भैम्याः पृथगुपादानं दर्शनस्यानुरागपू. करवलक्षणविशेषयोतनार्थः // 1 // इस ( नलके प्रत्यक्ष होने ) के बाद दमयन्ती-दर्शनजन्य आश्चर्यसे निमेषरहित तथा रोमानयुक्त इस युवक (नल ) को सम्पूर्ण सुलोचनाओं (सुन्दर नेत्रवाली सखियों) ने तथा राजा भीमकी पुत्री (दमयन्ती) ने सहसा (अर्थात् अतकितावस्थामें नलके वहां उपस्थित होने से उत्पन्न ) आश्चर्यसे निमेष रहित ( एकटक ) होकर नेत्रसे ( एकवचन 'नेत्र' शब्दका प्रयोग होनेसे कटाक्षपूर्वक) देखा। [ परम सुन्दरी दमयन्तीके देखनेसे आश्चर्यचकित नल निनिमेष एवं रोमानित हो ही रहे थे, किन्तु अन्तःपुरमें उनके सहसा प्रकट हो जानेसे सखियों सहित दमयन्ती भी आश्चर्य चकित होकर निमेषरहित दृष्टिसे युवक होने से दर्शनीय नलको देखने लगी। यहां 'सुदृशः' ( सुन्दर नेत्रवाली ) विशेषण देकर दृष्टिसे पान करना कहनेसे सुन्दर नेत्र होनेसे अधिक पान करने अर्थात् नलको देखने में सखियोंका सामर्थ्याधिक्य भी ध्वनित होता है / सब सखियोंके सहित दमयन्तीने नलको देखा] // 1 //
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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