________________ प्रथमः सर्गः। (भब नलकी शरीरशोमाका वर्णन भारम्म करते है-) उस (नक) के चरणने पोंमें घृणा : या-दया ) की, ( क्योंकि उनमें पद अर्थात नल-चरणसे ) (या-नल-चरणकी) शोमा यी, या-वे पद्म नलचरणमें रेखारूपमें स्थित थे, अतः इन पोंने मुझसे शोमा प्राप्त की है। इस कारण मद पेक्षा होनश्री इनके साथ मुझे स्पर्धा करना उचित नहीं है। यह समझकर नल चरणने पमों में घृणा की, या-'ये पद्म रेखारूप में मुझमें ही स्थित अर्थात मेरे ही आश्रित है' यह समझकर नल-चरणने पड़ों पर दया की ( अपनेसे हीनके साथ घृणा करना तथा अपने आश्रितपर दया करना नल-चरणके लिए उचित ही था)। पस्लवमें उस ( नल ) के हाथकी कान्तिका लेश ( थोड़ा-सा अंश ) भी कहा था ? अर्थात नहीं था, ( क्योंकि वह परलव ( नल-चरणके लेश अर्थात अल्पतमाशबाला ) था, अत एव जिस पल्लवमें नल चरणका लेश था वह भला इनके बायकी कान्ति के शवाहा कैसे हो सकता था ? अर्थात् हीनाङ्ग चरणका लेशवाला श्रेष्ठाङ्ग हाथको कान्तिका लेशवाहा कदापि नहीं होता ) / तथा शरत्कालीन पूणिमाका चन्द्रमा उस ( नल ) के. मुखके दासंखका अधिकारी भी नहीं हुआ ( तो मला नलके मुखकी समता कैसे करता ? क्योंकि चन्द्रभा शरत्काल एवं पूणिमाके योगसे रमणीय हुआ था, वह भी केवल एक दिनके लिए और वह सोलह ही कलामोसे पूर्ण था, कितु नल-मुख स्वत एव विना किसीके योग ( सहायता ) से सर्वदा के लिए रमणीय एवं चौसठ कलाओंसे युक्त है, अतः उस दोन चन्द्रमा का श्रेष्ठतम नल मुखकी समानता करना तो असम्भव ही था, उसे नलके दासत्वके योग्य भी नहीं होना उचित ही था ( क्योंकि रमणीयतम नायकके लिए रमणीय ही दासका होना उचित होता है) [नलके चरण कमल से, हाथ नवपल्कवसे तथा मुख शरत्कालीन पूर्णिमाके चन्द्रमासे मी अत्यधिक सुन्दर थे ] // 20 // किमस्य रोम्णाङ्कपटेन कोटिभिविधिन रेखाभिरजीगणद् गुणान् / न रोमकूपौघमिषाजगत्कृता कृताश्च कि दूषण शुन्यबिन्दवः ? // 21 // किमिति / विधिविधाता अस्य नलस्य गुणान् रोग्णां कपटेन म्याजेन कोटिभिः कोटिसख्याभिः लेखाभिः न अबीगण न गणितवान किम् ? अपितु गणितशनेवेत्यर्थः तथा जगरकृता, स्रष्ट्रा विधिनेत्यर्थः / रोग्णां कूपाः विवराणि तेषाम् भोघः समूह एव मिर्ष ग्याजः तस्मात् / दूषणानां दोषाणां शून्यस्य अमावस्य बिन्दवःज्ञापचिह्वभूता वत्तलरेखाः न कृताः किम् ? अपि तु कृता एवेत्यर्थः / अस्मिन् गुणा एध सन्ति, न कदाचित् दोषा इति भावः / अत्र रोग्णांरोमकूपाणाञ्च कपटमिषशब्दाभ्याम् अपह्नवे गुणगणनालेखस्वदूषणशून्यबिन्दुत्वयोरुरप्रेक्षणात सापह्नवोपयोः संसृष्टिः // 21 // ब्रह्माने रोमोके कपट ( बहाने ) से साढ़े तीन करोड़ रेखामों से इस ( नल ) के गुणों को नहीं गिना क्या ? अर्थात् अवश्य ही गिना, और जगत्सृष्टिकर्ता ब्रह्माने साढ़े तीन करोड़ रोमकूपोंके कपटसे इस ( नक) के दोषामाव-बिन्दुओंको नहीं किया क्या ? अर्थात 2 नै०