________________ 34 सप्तमः सर्गः। किं नर्मदाया मम सेयमस्या दृश्याऽभितो बाहुलता मृणाली / कुचौ किमुत्तस्थतुरन्तरीपे म्मरोष्मशुष्यत्तरवाल्यवारः / / 73 / / किमिति / स्मरोष्मणा स्मरसन्तापेन शुष्यत्तरमतिशुष्यत् / बाल्यमेव वाः वारि यस्यास्तस्या भैम्या एव नर्मदायाः क्रीडाप्रदायाः रेवायाश्च सम्बन्धिनी। 'रेवा तु नर्मदा' इत्यमरः / अभित उभयतो दृश्या सेयं बाहुलता मृणाली विसलता किम् ? अत्र नर्मदाया विधेयप्राधान्यात् मृणाल्याः साक्षात् सम्बन्धात् “अभितः परितः" इत्यादिना द्वितीया नास्ति / कुचावेवान्तरीपे अपामन्तस्तटे 'द्रोपोऽस्त्रियामन्तरी यदन्तर्वारिणस्तटम्' इत्यमरः / "सुपसुपा" इति समासः। "क-पूः" इत्यादिना समासान्तोऽकारः / “दूधन्तरुपसगभ्योऽप ईत्" उत्तस्थतुलस्थिती किम् ? ऊर्ध्वकर्म. स्वात् परस्मैपदं रूपकोज्जीविता उस्प्रेक्षा // 73 // कामजन्य सन्ताप ( पक्षा०-कामरूपी सन्ताप अर्थात् धूप ) से अधिक सूख रहा है, शैशवरूप जल जिसका ऐसी तथा मुझे आनन्द देनेवाली इस दमयन्तीके ( पचा०-इस नर्मदा नामक नदीके ) दोनों ओर दिखलाई पड़ती हुई ( अथवा दर्शनीय अर्थात् सुन्दर ) बाहुलता विसलता है क्या ? और दोनों स्तन जलके भीतर ऊपर उठे हुए दो द्वीप अर्थात् टापू हैं क्या ? कुछ टीकाकारोंने "स्मरोष्मशुष्यत्तरवाल्यवारः" विशेषण पदको केवल उत्त. रार्द्ध के साथ ही अन्वय किया है)। [जिस नर्मदा नदीमें दोनों सुन्दर बिसलता दृष्टिगोचर होती है तथा धूपसे पानीके सूखनेसे दोनों ओर ऊपर उठे टापू दृष्टिगोचर होते हैं, उसी प्रकार कामके द्वारा दमयन्तीका बचपन दूर होता जा रहा है और स्तन बढ़ गये है, बाहुलता बिसलताके समान मालूम पड़ रही हैं ] // 73 // तालं प्रभु स्यादनुकर्तुमेतावुत्थानसुस्थी पतितं न तावत् / परं च नाश्रित्य तरुं महान्तं कुची कशाङ्गायाः स्वत एव तुङ्गौ // 7 // तालमिति / तावत् पतितं च्युतं तालफलं कर्तृ उत्थानेन ऊर्धावस्थानेन सुस्थौ सुप्रतिष्ठौ अपतितावित्यर्थः / एतौ कुचौ अनुकतुं न प्रभु समर्थं न स्यात् , पतिताऽ. पतितयोः कुतः साम्यमिति भावः / परं पतितं च महान्तमतितुङ्गं तरुमाश्रित्य, तुझं सदिति शेषः / स्वत एव तुङ्गौ कृशाङ्गन्याः कुचौ अनुकतुं न प्रभु / कुतः स्वाभाविको यदित्यर्थः / अस्वाभाविकस्वाभाविकौन्नत्ययोः कथं साम्यमिति भावः // 74 // ___ (पेड़से गिरा हुआ) तालफल सर्वदा ऊपर हुए अर्थात् उन्नत दमयन्तीके दोनों स्तनको समता ( बराबरी ) करनेमें समर्थ नहीं है अर्थात् समानता नहीं कर सकता, और दूसरा ( विन। गिरा हुआ ) तालफल बड़े पेड़का आश्रयकर स्वत एव विना किसीको आश्रय किये अपने आप ऊँचे इसके दोनों स्तनोंकी समता करनेमें समर्थ नहीं है। [ जो गिरा हुआ है वह उन्नतकी ओर जो दूसरेके आश्रयसे ऊँचा बना हुमा है वह स्वभावतः एव ऊँचा रहने