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________________ तृतीयः सर्गः। कर उपहास कर रहा है' इस भावनासे आश्चर्यचकित ) करनेके लिए उसके गमनादिका अनुकरण करता हुआ उसे हंसता है / / 10 / / पदे पदे भाविनि भाविनी तं यथा करप्राप्यमवैति नूनम् / तथा सखेलं चलता लतासु प्रतार्य तेनाचकृषे कृशाङ्गी / / 1 / / पदे पद इति / भावयन्तीति भाविनि हंसग्रहणमेव मनसा भावयन्ती कृशाङ्गी भैमी भाविनि भविष्यत्यनन्तर इत्यर्थः / 'भविष्यति गम्यादय' इति साधुः। पदे पदे तं हसं यथा करप्राप्यं करग्राहय नूनं निश्चितमवैति प्रत्येति, तथा सखेलं चलता गच्छता तेन हंसेन प्रतार्य वञ्चयित्वा लतासु आचकृषे आकृष्टा, एकान्तं नीतेत्यर्थः॥ भाविनि ( हंस-ग्रहणकी भावना वाली, दमयन्ती ) अगले प्रत्येक डग ( कदमपग ) पर जिस प्रकार उसे हाथसे ग्रहण करने योग्य समझती थी, उस प्रकारसे क्रीडापूर्वक चलता हुआ वह ( हंस ) कृशाङ्गी ( दमयन्ती ) को वञ्चितकर लताओं में ले गया // 11 // रुषा निषिद्धालजनां यदैनां छायाद्वितीयां कलयाञ्चकार | तदा श्रमाम्भःकणभूषिताङ्गी स कीरवन्मानुषवागवादीत् / / 12 / / रुषेति / रुषा निषिद्धालिजनां निवारितसखीजनां यदा छाया एव द्वितीया यस्यास्तामेकाकिनी कलयाञ्चकार विवेद, तदा श्रमाम्भःकणभूषिताङ्गी स्वेदाम्बुलवपरिष्कृतशरीरा स्विन्नगात्रान्तां स हंसः कीरवत् शुकवन्मनुष्यस्येव वाग्यस्य स सन्नवादीत् // 12 // ___ जब हंसने क्रोधसे सखियोंको निषेधकी हुइ दमयन्तीको अकेली जान लिया, तब परिश्रमके जल ( पसीने ) की दूंदोंसे भूषित अङ्गोंवाली ( दमयन्ती ) से तोते के समान मनुष्यकी बोली बोलने लगा / / 12 / / अये ! कियद्यावदुपैषि दूरं व्यर्थ परिश्राम्यसि वा कमथम् ? | उदेति ते भीरपि किन्नु बाले विलोकयन्त्या न घना वनालीः ? / / 13 // __अय इति / अये बाले ! व्यर्थं कियद्रं यावदुपैषि उपैष्यसि ? 'यावत्पुरानिपातयोर्लट' / किमर्थं परिश्राम्यसि वा ? घनाःसान्द्रा वनालीर्वनपंक्तीविलोकयन्त्यास्ते भीरपि नोदेति किन्नु ? // 13 // ___ हे दमयन्ति ! कितनी दूर तक आवोगी ?, व्यर्थ ही क्यों थक रही हो 1, हे बाले ! सघन वन-समूहोंको देखकर तुम्हें भय भी उत्पन्न नहीं होता ? ! [ अथवा-हे दमयन्ति ! कितनी दूर तक व्यर्थ आवोगी ! क्यों थक रही हो / हे नवीन सखियों वाली दमयन्ति ? सवन वन-समूहो.. ... ..' या-........ आवोगी ? व्यर्थ ( बि+ अर्थ अर्थात् मुझ पक्षीके लिए ) क्यों परिश्रम करती हो ? / या-..... आवोगी, इस प्रकार क्यों परि 1. 'किमित्थम्' इति पाठान्तरम् / 2. 'किन्न वाले' इति पाठान्तरम् /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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