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________________ 128 नैषधमहाकाव्यम् / उडुपरिषदि मध्यस्थायिशीतांशुलेखाऽ नुकरणपटुलक्ष्मीमक्षिलक्षीचकार / / 107 / / अथेति / अथ दर्शनानन्तरं कनकपतत्रः स्वर्णपक्षी तत्र वने सहशभासामात्मतुल्यलावण्यानां सखीनां सदसि विस्फुरन्तीं 'स्फुरतिस्फुलत्योर्निर्निविभ्य' इति पत्वम् / उडुपरिषदि तारकासमाजे मध्यस्थायिन्याः शीतांशुलेखायाश्चन्द्रकलायाः अनुकरणे पटुः समर्था लक्ष्मीः शोभा यस्याः सा इत्युपमालङ्कारः / तां राजपुत्रीम् अतिलक्षीचकार अद्राक्षीदित्यर्थः // 107 // ___ इसके बाद वह सुवर्णमय ( राजहंस ) पक्षी वहां (क्रीडावनमें ) समान कान्तिवाली सखियोंकी सभा ( बीच ) में देदीप्यमान उस राजकुमारी दमयन्तीको नक्षत्र-समूहके बीच में स्थित चन्द्रलेखाके तुल्य शोमती हुई देखा // 107 / / भ्रमणरयविकीणस्वणभासा खगेन कचन पतनयोग्यं देशमन्विष्यताऽधः / मुखविधुमदसीयं सेवितुं लम्बमानः शशिपरिधिरिवोच्चैमण्डलस्तेन तेने / / 108 / / भ्रमणेति / अधो भूतले वचन कुत्रचित्पतनयोग्यं देशं स्थानम् अविष्यता गवे. षमाणेन अत एव भ्रमणरयेण विकीर्णा स्वर्णस्य भा दीप्तिर्यस्य तेन खगेन अमुण्या अयम् अदसीयम् 'वृद्धाच्छः' 'त्यदादानि चेति वृद्धिसंज्ञा / मुखेन्दं सेवितुं लम्बमानः स्रंसमानः शशिपरिधिः चन्द्रपरिवेष इव उच्चैरुपरि मण्डलो वलयः तेने वितेने तनोतेः कर्मणि लिट् / उत्प्रेक्षास्वभावोक्त्योः सङ्करः // 108 // घूमने ( चक्कर लगाने ) के वेगसे स्वर्णकान्तिको फैलानेवाले तथा कहीं पर नीचे योग्य स्थानको ढूढ़ते हुए उस ( राजहंस ) पक्षीने इस ( दमयन्ती ) के मुखचन्द्रकी सेवाके लिए नीचेको ओर आये हुए चन्द्रपरिधि के समान मण्डल किया [ अर्थात् पृथ्वी पर उतरते हुए उस राजहंसने जो ऊपर में चक्कर लगाया, वह ऐसा ज्ञात होता था कि दमयन्तीके मुखचन्द्र की सेवाके लिए चन्द्रपरिधि ( चन्द्रमाका घेरा ) नीचे आ गया हो। नीचे उतरते समय चक्कर लगाकर उतरना पक्षियोंका स्वभाव होता है, तदनुसार ही नीचे उतरता हुआ राजहंस चारों ओर चक्कर लगाने लगा ] // 108 // अनुभवति शचीत्थं सा घृताचीमुखाभि. नं सह सहचरीभिनन्दनानन्दमुच्चैः / 1. 'सूतोग्रराजभोजकुलमेयरुभ्यो दुहितुः पुत्रड वा' इति राजशब्दात्परस्य दुहितृशब्दस्य पुत्रडादेशे टित्त्वात् डीपि राजपुत्रीति / केचित्तु शाङ्गरवादिषु पुत्रशब्दं पठन्ति ! तेन पुरुहूतपुत्रीति सिद्धम्' इति 'प्रकाश' कृदाह /
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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