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________________ 16 नैषधमहाकाव्यम् / तीनों लोकों में अनन्य साधारण ( सौन्दर्यादि) गुणोदय वाली कन्याको वर रूपमें प्राप्त किया [ तीनों काल तथा तीनों लोकमें इसके समान गुण किसीको भी नहीं होगा, ऐसा वरदान अतिशय प्रसन्न सत्यवक्ता तपस्वी 'दमन' ऋषिसे राजा भीमने पाया, जिसके फल स्वरूप वह कन्या उत्पन्न हुई ] // 17 // भुवनत्रयसुभ्रवामसौ दमयन्ती कमनीयतामदम् / उदियाय यतस्तनुश्रिया दमयन्तीति ततोऽभिधां दधौ // 18 // अथास्या नामधेयं व्युत्पादयन्नेवाह-भुवनत्रयेति / असौ वरप्रसादलब्धा तनया कर्ती तनुश्रिया निजशरीरसौन्दर्येण करणेन भुवनत्रयसुभ्रवां त्रैलोक्यसुन्दरीगां कमनीयतामदं सौन्दयंग दमयन्ती अस्तं गमयन्ती दमेयन्ताद् 'न पादमित्यादिना कत्रंभिप्राय भात्मनेपदापवादः परस्मैपदप्रतिषेधेऽप्यकभिप्रायविवक्षायां परस्मैपदे लटः शत्रादेशः / उदियाय उदिता, इणो लिट् , ततस्तस्मादेव निमित्ता. हमयन्तीत्यभिधामाख्यां दधी, वधातेलिट् // 18 // जिस कारण वह कन्या शरीरको शोमासे तीनों लोककी सुन्दरियों के सौन्दर्यामिमान को दमन करने वाली उत्पन्न हुई, उस कारण उसका नाम 'दमयन्ती' पड़ा // 18 // श्रियमेव परं धराधिपाद् गुणसिन्धोरुदितामवेहि ताम् / व्यवधावपि यां विघोः कलां मृडचूडानिलयां न वेद कः // 16 // अथैकविंशतिश्लोकैश्चिकुरादारभ्य दमयन्तीं वर्णयति-श्रियमिति / हे नृप ! ताम् दमयन्ती गुणसिन्धोः गुणसागरादषिपाद्धीमनरेन्द्रादुदितामुत्पन्नां श्रियं साक्षाल्ल चमीमेव परं ध्रवमवेहि जानीहि, अवपूर्वादिणो लोटि 'सेहिरिति झादेशे ङित्त्वान्न सार्वधातुकगुणः, संहितायाम् 'भाद्गुणः' अत्र केवलायपूर्वस्य इणो ज्ञानार्थस्वादाङ् प्रश्लेषे तदलामात्, प्रश्लेषेऽपि 'ओमाङोश्चेति पररूपमिति केषाधिस्प्रक्रियोप. न्यासो वृथा। प्रक्षाल्य त्यागः 'अवैहीति वृद्धिरवद्येति वामनसूत्रमप्यनाइप्रश्लेष एव भ्रान्तिप्राप्तवृद्धिप्रतिषेधपरं गुण एव युक्त इति व्याख्यानादन्यथा 'ओमाको. श्वे'ति पररूपमेव युक्तमित्युच्येत इति / न चदेशष्यवधानास श्रीरेवेति वाध्यमित्याहग्यवधौ ग्यवधाने सत्यपि 'उपसर्गे घोः किरिति किप्रत्ययः, मृडचूदानिलयां हरशिखाश्रयां कलां विधोरिन्दोरेव कलां को वा न वेद ? सर्वोऽपि वेदैवेत्यर्थः, 'विदो लटो वेति वैकल्पिको णलादेशः / यथा हरशिरोगतापि कला चन्द्रकलेच, तथा भीमः भवनोदिताऽप्येषा श्रीरेवेति सौन्दर्यातिशयोक्तिः। अत्र श्रीकलयोः नृपमृडो वाक्य. इये बिम्बप्रतिबिम्बमावेन सामान्यधर्मवत्तया निर्दिष्टाविति दृष्टान्तालकारः। 'यत्र वाक्याइये बिम्बप्रतिबिम्बतयोच्यते / सामान्यधर्मः काग्यज्ञैः स दृष्टान्तो निगयते // ' इति लक्षणात् // 19 // बाप उस ( दमयन्ती) को गुण-समुद्र राजा भीमसे उत्पन्न साक्षात् लक्ष्मी हो जाने,
SR No.032781
Book TitleNaishadh Mahakavyam Purvarddham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHargovinddas Shastri
PublisherChaukhambha Sanskrit Series Office
Publication Year1976
Total Pages770
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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