________________ वलि श्री नेमिनाथना सासननें विर्षे श्रीकृष्ण मोरारिना पुत्रा सांब अनें प्रदोमन महापराक्रमि श्री नेमिनी देसना सांभली, वैराग्य पांमी, चारित्र लेई साढा आठ कोडि मुनि संघातें श्री सिधाचलें आवी, आत्मतत्त्व निरावर्ण करी, निर्मल थई, अणसण करी मोक्षने पाम्यां। वलि श्री नेमिना सासननें विषं श्री नारद एकाण लाखथी मोक्ष पोहतां। हवे पांच पांडव श्री नेमनी देसना सांभली, श्री सीधाचलजीनो वर्णव सांभली हर्ष धरतां चतुर्विध संघ लै श्री सिद्धाचलजी आवी, उधार फरी करयाव्यो। नवि ठाम ठाम तीर्थनी थापना करी, घरें आवी राज्यरिध छांडि, पांचे पांडवे चारित्र लेइं मास मासखमणनें पारणुं करतां, विचरतां हस्तिनागपुरें आव्या। विचार करयो, 'जे आ पारणुं तो मासखमणनूं करीइं अने हवे तो बिजा मासखमणनूं पारणुं श्री नेमिनाथजीनें वांदीसु तिवारें करीस्यु।' एहवो अभिग्रह लेइ पाठरां प्रख प्रमाजीनें त्रिजें प्रहरें हस्तिनागपुरने विषे गोचरी करी, गाम बाहरें आवतां सांभलू जे श्रिनेमिनाथ भगवान् मोक्ष पध्याऱ्यां। ते वात सांभली आहार कुंभारने निमाडें परठवि सिधाचलजिइं आवी अणशण करी, बीस कोडि मुनि सहित मोक्षं पोहतां। ____ हवे श्री नेमिनाथ भगवानं विहार करतां श्री गिरनार पंधाऱ्या। पांचस्य छत्रिस मुनि संघातें श्री गिरनार उपरेंः मासो उपवासें मोक्ष पधारयाः। नमोस्तुश्री विमलगिरीनें नमोनमः।221 हिन्दी अनुवाद 22. नेमिनाथजी आप बालब्रह्मचारी हैं। आपने 1,000 पुरुषों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण की थी। आपके परिवार में 11 गणधर थे। 18,000 साधु, 40,000 साध्वियां, 1,69,000 श्रावक, 3,36,000 श्राविकाएं थीं। आपका देहमान 10 धनुष ऊंचा था। आपका वर्ण कृष्ण था। आपका लांछन शंख है। आपकी आयु पूरे एक हजार वर्ष की थी। क्रमशः विचरण करते हुए आप सिद्धाचलजी पधारें / वहां अपनी देशना में भी सिद्धाचलजी तीर्थ की महिमा प्ररूपित की। अनेक भव्य जीवों ने इससे प्रतिबोधित होकर वैराग्य प्राप्त किया। उन्होंने चारित्रधर्म ग्रहण किया और अनशन-व्रताराधना करके सिद्धपद प्राप्त किया। श्रीकृष्ण मुरारि के पराक्रमी पुत्र प्रद्युम्न और शांब ने प्रभु की धर्मदेशना से प्रतिबोधित होकर वैराग्य प्राप्त किया। उन्होंने चारित्र धर्म अंगीकार किया और साढ़े आठ करोड़ मुनियों के साथ सिद्धाचल पहुंचे। स्वयं विशुद्ध-निर्मलावस्था प्राप्त करके आत्मतत्त्व निरावरण किया और अनशन व्रताराधना करते मोक्षपद प्राप्त किया। नेमिनाथ प्रभुजी के शासन काल में नारद ने भी प्रभु की देशना से प्रतिबोधित होकर अन्य 91,000 मुनियों के साथ सिद्ध पद प्राप्त किया। . पाँच पांडवों ने भी सिद्धाचलजी की महिमा सुनी। प्रसन्न होकर चतुर्विध संघ लेकर उन्होंने सिद्धाचलजी की ओर प्रयाण किया। वहां तीर्थों का जीर्णोद्धार किया और अनेक स्थलों पर नये तीर्थों की स्थापना की। पटदर्शन