________________ (2) शत्रुजय महिमा प्रस्तुत पट का नाम है शत्रुजयपट। प्रारम्भ में भगवान ऋषभदेव को विविध उपमा से उपमानित किया गया है, यह पटकर्ता की अनन्य भक्ति-श्रद्धा की प्रतिरूप है। ऋषभदेव भगवान अशरण के शरणरूप शरणागत वत्सल, भवभय हरण, भवभय विघ्न निवारक, भव्य जीवों को संसार समुद्र पार करवाने के लिए धर्मरूप नाव समान, अज्ञान रूप तिमिर-अंधकार को मिटाने वाले अर्क-तेज पुंज समान, चौरासी लाख भव रूप अटवी पार करवाने के लिए सार्थ-सुरक्षित रक्षक समान, कर्मरूप रोग मिटाने वाले धनवंतरी वैद्य समान, कषाय-आंतरिक शत्रु रूप प्रज्ज्वलित अग्नि को शांत करने हेतु पुष्करावर्त्त मेघ समान है। ऋषभदेव वंदन के बाद सिद्धाचल-शत्रुजय तीर्थ की महत्ता सिद्ध की गई है। सिद्धाचल शब्द सामान्यतः किसी भी पवित्र तीर्थ स्थान के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यह पवित्र तीर्थ सौराष्ट्र के भावनगर जिले के पालीताणा शहर में स्थित है। शत्रुजयो नाम नगाधिराजः, सौराष्ट्र देशे प्रथित प्रशस्तिः। तीर्थाधिराजो भुवि पुण्य भूमि-स्तत्रादिनाथं शिरसा नमामि।। अर्थ-सौराष्ट्र देश में प्रसिद्ध है प्रशस्ति जिसकी, यह पृथ्वीतल पर पवित्र भूमि रूप तीर्थाधिराज शत्रुजय नामक गिरिवर है, वहां विराजमान आदिनाथ भगवंत को मैं नतमस्तक वंदन करता हूं। सामान्यतः ऐसे पट लंबचोरस या चोरस आकार में उपलब्ध है। उसमें शत्रुजय तीर्थ का सांगोपांग वर्णन समाविष्ट होता है। प्रायः वे भित्तिचित्र की तरह दीवाल पर लटकाये जाते हैं। चतुर्विध संघ की दैनिक धार्मिक क्रिया में उसका निजी स्थान है। इसका सविशेष माहात्म्य कार्तिक पूर्णिमा के दिन है। उसी दिन आदिनाथ भगवान के प्रपौत्र द्रविड मुनि के पुत्र द्राविड और वारिखिल्ल ने दस करोड़ मुनियों के साथ सिद्ध पद प्राप्त किया था, तब से यह पर्व-दिन माना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन शत्रुजय तीर्थ की यात्रा की महिमा अपार है। मगर समग्र संघ वहां जा नहीं सकते तो उसी दिन ऐसे शत्रुजय पट एक खास स्थान पर रखे जाते हैं, जहां चतुर्विध संघ विशेष महिमा के साथ पूजा-चैत्यवंदन, स्तुति आदि धार्मिक क्रिया के साथ भाव तीर्थ यात्रा करते हैं। मगर प्रस्तुत पट इससे भिन्न हैं। यह पट 12 मीटर लंबा और 24 से.मी. चौड़ा है। इसमें वर्तमान 24 तीर्थकरों के चित्रांकन के साथ उनके संबंधित जानकारी दी गई है। उन 24 तीर्थंकरों के परिवार अर्थात् दीक्षा के समय साधुओं की संख्या, गणधर, मुख्य गणधर, साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविका संख्या, मुख्य साध्वीजी, देहमान, कुल आयु, वर्ण, लांछन विषयक माहिती समाविष्ट है। उसमें से कई जगह पर प्रमुख गणधर, प्रमुख साध्वीजी के नाम प्राप्त नहीं हैं। अनुमान करते हैं कि शायद गलती से लिखा नहीं गया होगा। उन 24 तीर्थंकरों में से तीर्थंकर 1, 2, 4, 16, 20, 22 और 24 विषयक विस्तृत जानकारी प्रदान की गई है। सामान्यतः इसमें उन तीर्थकरों के शासनकाल समय में जो विशेष घटना घटी है, उसे कथात्मक शैली में निरूपित किया गया है। इस पट का मुख्य उद्देश्य शत्रुजय तीर्थ का माहात्म्य प्रकाशित करना है। परम्परा से शत्रुजय तीर्थ की महिमा सविशेष है। प्रथम तीर्थंकर श्रीऋषभदेव के आदेश से उनके गणधर श्री पुंडरीकजी ने भव्य जीवों के कल्याणार्थ परम पावक तीर्थ श्रीशत्रुजय की महिमा सवा लाख श्लोक में प्ररूपित की थी। उत्सर्पिणी काल और मनुष्य की अल्पायु का ध्यान करते हुए भगवान श्रीमहावीरस्वामी के आदेश से सुधर्मा स्वामी ने उसका संक्षिप्तार्थ 24,000 श्लोक में किया। तत्पश्चात् जैनाचार्यों ने उनमें से आम जनता के सदुपदेशार्थ शत्रुजय महिमा को बोधक स्वरूप सारार्थ ग्रहण किया है। पटदर्शन 113