________________ bijo udhara Dandabirja no, trijo Isana-indra no, cotho Mahendra no, pamcamo Brahmandra no, chattho Bhuvanapati no, satamo Sagara-cakri no, atthamo Vyantra-indra no, navamo Candrajasa no, dasamo Cakravudha no, igyaramo Ramacandra no, baramo 5 Pandava no, teramo Javada-Bhavada no, caudamo Bahadade mantri no, panaramo Samarasaranga no, solamo Karmasa no, sattaramo uddhara Dupasaha-acarya na upadesa thi Vimalavahana-raja karavasyem // 17 // e satara to mota, bija nahana ni samsya nahih // have sriSiddhacalaji na 21 ekavisa nama chem. te kahem chemh // 1. SriSetrumjaya 2. Pundarikagiri 3. Siddhasetrem 4. Vimalacala 5. Suragiri 6. Mahagiri 7. Punyarasi 8. Sripada 9. Parvendra 10. Mahatirtha 11. Sasvato 12. Drdhasakti 13. Muktilaya 14. Pupphadanta 15. Mahapadma 16. Prathavipittha 17. Subhadra 18. Kailasagiri 19. Patalamula 20. Akarmaka 21. Sarvakamada namaskara hajo sriSiddhacala nem namo namah // Colophon iti SriSiddhacala-pata sampurnamh// samvat 1859 na varsem sake 1725 pravarttamanem Posa Magasira vadi 2 dine krsna-pakseh // Agastapure Sumatinatha-prasadena prasadath// e pata vacem tehanemh// Pam/Kesaravijem ni vamdana 1008 vara chem // srih. भाग-2 पट अन्तर्गत कथाएं इस पट के अन्तर्गत की कथाएं मुख्यतः मौखिक रूप में मिल रही है। इस पट में उल्लिखित कथाएं शत्रुजय तीर्थ की पवित्रता और प्रचलितता की ओर निर्देश करती हैं। मध्यकालीन युग अर्थात् विक्रम शताब्दी 12 से 18 के बीच शत्रुजय तीर्थ विषयक अनेकविध कृतियों की रचना उपलब्ध हैं। विक्रम की 14वीं शताब्दी में धनेश्वर सूरि ने शत्रुजय माहात्म्य की रचना की। इसके अलावा नेमिचन्द्रसूरि ने 'प्रवचन सारोद्धार', हेमचन्द्राचार्य ने 'त्रेसठ श्लाका महापुरुष चरित्र', सोमतिलक सूरि ने 'सप्तति स्थान प्रकरण' इत्यादि अनेक ग्रन्थों की संस्कृत, प्राकृत भाषा में रचना की हैं, जिसमें शत्रुजय तीर्थ विषयक जानकारी उपलब्ध है। इसके अलावा प्रादेशिक भाषा में भी इस विषयक बहुत से जानकारीपूर्ण कृतियों की रचना उपलब्ध हैं जिसमें ये कथाएं किसी न किसी रूप में प्राप्त होती हैं। इन सब कथाओं के द्वारा तीर्थ जैन परम्परा में कितना पवित्र और महत्वपूर्ण है इसकी प्रतीति स्वतः ही हो जाती है। उपरोक्त पट में समाविष्ट कथाएं शत्रुजय स्थित प्रत्येक स्थल, ढूंक, नदी, कुंड, पर्वत इत्यादि विषयक एक छोटा सा इतिहास चमत्कारिक घटना से हमें परिचित करती हैं। माना जाता है कि उसकी प्रत्येक ईंट पावन, पवित्र है और उसके साथ कोई न कोई ऐतिहासिक घटना जुड़ी हुई हैं। उसके कुण्ड के पानी का माहात्म्य आदि-अनादि से ऐसा ही सुरक्षित हैं। उसके कुण्ड और तालाब के पानी का सविशेष महत्त्व है और उससे संदर्भित कथाएं इसके अन्तर्गत उपलब्ध हैं। इस तीर्थ पर सिर्फ मनुष्य ही नहीं मगर देव, देवी, विद्याधर, विद्याधरी, तिर्यंच और नारकी के जीव भी यात्रा करने आते हैं। उनके द्वारा प्रत्यक्ष स्वानुभव से भी इसका माहात्म्य जाना जाता है और इस तीर्थ की विशिष्टता पहचानी जाती है। उसके कुण्ड के पानी के स्पर्श मात्र से मानव जीवन में परिवर्तन हो सकता है और असाध्य, अति पीड़ित रोग भी क्षण मात्र में अदृश्य हो जाता है। इस तीर्थ में स्थित प्रत्येक टेकडी, ढूंक के साथ एक नाम जुड़ा हुआ है और उसके साथ एक ऐतिहासिक घटना घटित है उसी पर आधारित रहकर इसका नामकरण किया गया है। इसके अन्तर्गत कथाएं उपर्युक्त विषय पर आधारित हैं जो जैन भक्तों को इस तीर्थ के प्रति श्रद्धान्वित करती है। 98 पटदर्शन