________________ चतुर्विध संघ लेकर राजा सिद्धाचलजी पहुंचे। वहां प्रभुदर्शन-अष्टाह्निक महोत्सव किया। फिर चारित्र धर्म अंगीकार किया। अनशन व्रत अंगीकार करके सिद्धपद-मोक्षपद प्राप्त किया। नमो सिद्धाचलजी-विमलाचलजी। भगवान महावीर को सौधर्म इन्द्र ने शत्रुजय नदी के महिमा विषयक पूछा। वीर ने सविस्तृत महिमा बताई। उस शत्रुजय नदी में जो भव्य जीव सान करते हैं, उसके भव भ्रमण के चक्र कम होते हैं, कर्मक्षय से मुक्ति शीघ्र मिलती है। शत्रुजयतीर्थ का 17 तीर्थोद्धार जिसने करवाए थे, उस विषयक जानकारी दी गई है। प्रथम जीर्णोद्धार भरत चक्रवर्ती, दूसरा जीर्णोद्धार दंडवीर्यनप, तीसरा जीर्णोद्धार ईशानइंद्र, चौथा जीर्णोद्धार माहेन्द्र, पांचवां जीर्णोद्धार ब्रह्मेन्द्र, छठा जीर्णोद्धार भुवनपति, सातवां जीर्णोद्धार सगर चक्रवर्ती, आठवां जीर्णोद्धार व्यंतरेन्द्र, नौवां जीर्णोद्धार चंद्रयशा नृप, दसवां जीर्णोद्धार चक्रायुध नृप, ग्यारहवां जीर्णोद्धार रामचन्द्रजी, बारहवां जीर्णोद्धार पांच पांडव, तेरहवां जीर्णोद्धार जावडभावड, चौदहवां जीर्णोद्धार बाहडदे मंत्री, पन्द्रहवां जीर्णोद्धार समरासारंग, सोलहवां जीर्णोद्धार कर्मशाह, सत्रहवां जीर्णोद्धार द्रुपसाह आचार्य के सदुपदेश से विमलवाहन नृप करवाएंगें। यह सत्रह तो बड़े जीर्णोद्धार हैं। अन्य छोटे तो असंख्य हैं। सिद्धाचलजी के 21 नाम निम्नलिखित हैं * श्री शत्रुजय 1, श्री पुंडरीकगिरि 2, श्री सिद्धक्षेत्रा 3, श्री विमलाचल 4, श्री सुरगिरि 5, श्री महागिरि 6, श्री पुण्यराशि 7, श्री श्रीपद 8, श्री पर्वेद्रं 9, श्री महातीर्थ 10, श्री शाश्वता 11, श्री वृद्धशक्ति 12, श्री मुक्तिलय 13, श्री पुष्पदंत 14, श्री महापद्म 15, श्री पृथ्वीपीठ 16, श्री सुभद्र 17, श्री कैलासगिरि 18, श्री पातालमुख 19, श्री अकर्मक 20, श्री सर्वकामद 21 / प्रशस्ति :ह्र श्री सिद्धाचलजी को नमस्कार हो। यह श्री सिद्धाचल पट पूर्ण हुआ। सम्वत् 1859 का वर्ष, शक संवत 1725 की (पोंस) मृगशिर बदी के दिन कृष्ण पक्ष में अगस्तपुर में सुमतिनाथ की कृपा से पूर्ण हआ। पं. केसरविजय को 1008 बार वंदना। श्रीः। पटदर्शन - 95